Pravachansar (Hindi).

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शरीरानुरागसेवकत्वेन न च युक्तस्य अप्रतिपूर्णोदर एवाहारो युक्ताहारः, तस्यैवाप्रतिहत-
योगत्वात प्रतिपूर्णोदरस्तु प्रतिहतयोगत्वेन कथंचित् हिंसायतनीभवन् न युक्तः, प्रतिहत-
योगत्वेन न च युक्तस्य यथालब्ध एवाहारो युक्ताहारः, तस्यैव विशेषप्रियत्वलक्षणानुराग-
शून्यत्वात अयथालब्धस्तु विशेषप्रियत्वलक्षणानुरागसेव्यमानत्वेन प्रसह्य हिंसायतनीक्रियमाणो
न युक्तः, विशेषप्रियत्वलक्षणानुरागसेवकत्वेन न च युक्तस्य भिक्षाचरणेनैवाहारो युक्ताहारः,
तस्यैवारम्भशून्यत्वात अभैक्षाचरणेन त्वारम्भसम्भवात्प्रसिद्धहिंसायतनत्वेन न युक्तः, एवं-
विधाहारसेवनव्यक्तान्तरशुद्धित्वान्न च युक्तस्य दिवस एवाहारो युक्ताहारः, तदेव सम्यगव-
लोकनात अदिवसे तु सम्यगवलोकनाभावादनिवार्यहिंसायतनत्वेन न युक्तः,
भिक्षाचरणेनैव लब्धो, न च स्वपाकेन दिवा दिवैव, न च रात्रौ ण रसावेक्खं रसापेक्षो न भवति,
किंतु सरसविरसादौ समचित्तः ण मधुमंसं अमधुमांसः, अमधुमांस इत्युपलक्षणेन आचारशास्त्र-
कथितपिण्डशुद्धिक्रमेण समस्तायोग्याहाररहित इति एतावता किमुक्तं भवति एवंविशिष्टविशेषणयुक्त
एवाहारस्तपोधनानां युक्ताहारः कस्मादिति चेत् चिदानन्दैकलक्षणनिश्चयप्राणरक्षणभूता रागादि-
४२२प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
(-योग्य) नहीं है; (अर्थात् वह युक्ताहार नहीं है ); और (२) अनेकबार आहारका सेवन
करनेवाला शरीरानुरागसे सेवन करनेवाला होनेसे वह आहार
युक्त (-योगी) का नहीं है
(अर्थात् वह युक्ताहार नहीं है )
अपूर्णोदर आहार ही युक्ताहार है, क्योंकि वही प्रतिहत योग रहित है [पूर्णोदर
आहार युक्ताहार नहीं है, ऐसा निम्नानुसार दो प्रकारसे सिद्ध होता है : ] (१) पूर्णोदर आहार
तो प्रतिहत योगवाला होनेसे कथंचित् हिंसायतन होता हुआ युक्त (-योग्य) नहीं है; और (२)
पूर्णोदर आहार करनेवाला प्रतिहत योगवाला होनेसे वह आहार युक्त (-योगी) का आहार
नहीं है
यथालब्ध आहार ही युक्ताहार है, क्योंकि वही (आहार) विशेषप्रियतास्वरूप अनुरागसे
शून्य है (१) अयथालब्ध आहार तो विशेषप्रियतास्वरूप अनुरागसे सेवन किया जाता है,
इसलिये अत्यन्तरूपसे हिंसायतन किया जानेके कारण युक्त (-योग्य) नहीं है; और
अयथालब्ध आहारका सेवन करनेवाला विशेषप्रियतास्वरूप अनुराग द्वारा सेवन करनेवाला
होनेसे वह आहार युक्त (-योगी) का नहीं है
१. युक्त = आत्मस्वभावमें लगा हुआ; योगी २.अपूर्णोदर = पूरा पेट न भरकर; ऊ नोदर करना
३. प्रतिहत = हनित, नष्ट, रुका हुआ, विघ्नको प्राप्त
४. योग = आत्मस्वभावमें जुड़ना
५. अयथालब्ध = जैसा मिल जाय वैसा नहीं, किन्तु अपनी पसंदगीका; स्वेच्छालब्ध