(-योग्य) नहीं है; (अर्थात् वह युक्ताहार नहीं है ); और (२) अनेकबार आहारका सेवन करनेवाला शरीरानुरागसे सेवन करनेवाला होनेसे वह आहार १युक्त (-योगी) का नहीं है
(अर्थात् वह युक्ताहार नहीं है ।)
२अपूर्णोदर आहार ही युक्ताहार है, क्योंकि वही ३प्रतिहत ४योग रहित है । [पूर्णोदरआहार युक्ताहार नहीं है, ऐसा निम्नानुसार दो प्रकारसे सिद्ध होता है : — ] (१) पूर्णोदर आहारतो प्रतिहत योगवाला होनेसे कथंचित् हिंसायतन होता हुआ युक्त (-योग्य) नहीं है; और (२) पूर्णोदर आहार करनेवाला प्रतिहत योगवाला होनेसे वह आहार युक्त (-योगी) का आहार नहीं है ।
यथालब्ध आहार ही युक्ताहार है, क्योंकि वही (आहार) विशेषप्रियतास्वरूप अनुरागसेशून्य है । (१) ५अयथालब्ध आहार तो विशेषप्रियतास्वरूप अनुरागसे सेवन किया जाता है,इसलिये अत्यन्तरूपसे हिंसायतन किया जानेके कारण युक्त (-योग्य) नहीं है; और अयथालब्ध आहारका सेवन करनेवाला विशेषप्रियतास्वरूप अनुराग द्वारा सेवन करनेवाला होनेसे वह आहार युक्त (-योगी) का नहीं है ।१. युक्त = आत्मस्वभावमें लगा हुआ; योगी । २.अपूर्णोदर = पूरा पेट न भरकर; ऊ नोदर करना ।३. प्रतिहत = हनित, नष्ट, रुका हुआ, विघ्नको प्राप्त ।४. योग = आत्मस्वभावमें जुड़ना ।५. अयथालब्ध = जैसा मिल जाय वैसा नहीं, किन्तु अपनी पसंदगीका; स्वेच्छालब्ध ।