Pravachansar (Hindi).

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कहानजैनशास्त्रमाला ]
चरणानुयोगसूचक चूलिका
४२३
एवंविधाहारसेवनव्यक्तान्तरशुद्धित्वान्न च युक्तस्य अरसापेक्ष एवाहारो युक्ताहारः, तस्यैवान्तः-
शुद्धिसुन्दरत्वात् रसापेक्षस्तु अन्तरशुद्धया प्रसह्य हिंसायतनीक्रियमाणो न युक्तः, अन्तर-
शुद्धिसेवकत्वेन न च युक्तस्य अमधुमांस एवाहारो युक्ताहारः, तस्यैवाहिंसायतनत्वात्
समधुमांसस्तु हिंसायतनत्वान्न युक्तः, एवंविधाहारसेवनव्यक्तान्तरशुद्धित्वान्न च युक्तस्य
मधुमांसमत्र हिंसायतनोपलक्षणं, तेन समस्तहिंसायतनशून्य एवाहारो युक्ताहारः।।२२९।।
विकल्पोपाधिरहिता या तु निश्चयनयेनाहिंसा, तत्साधकरूपा बहिरङ्गपरजीवप्राणव्यपरोपणनिवृत्तिरूपा
द्रव्याहिंसा च, सा द्विविधापि तत्र युक्ताहारे संभवति
यस्तु तद्विपरीतः स युक्ताहारो न भवति
कस्मादिति चेत् तद्विलक्षणभूताया द्रव्यभावरूपाया हिंसायाः सद्भावादिति ।।२२९।। अथ विशेषेण
मांसदूषणं कथयति
पक्केसु अ आमेसु अ विपच्चमाणासु मंसपेसीसु
संतत्तियमुववादो तज्जादीणं णिगोदाणं ।।“३२।।
जो पक्कमपक्कं वा पेसीं मंसस्स खादि फासदि वा
सो किल णिहणदि पिंडं जीवाणमणेगकोडीणं ।।“३३।। (जुम्मं)

भिक्षाचरणसे आहार ही युक्ताहार है, क्योंकि वही आरंभशून्य है (१) अभिक्षाचरणसे (-भिक्षाचरण रहित) जो आहार उसमें आरम्भका सम्भव होनेसे हिंसायतनपना प्रसिद्ध है, अतः वह आहार युक्त (-योग्य) नहीं है; और (२) ऐसे आहारके सेवनमें (सेवन करनेवालेकी) अन्तरंग अशुद्धि व्यक्त (-प्रगट) होनेसे वह आहार युक्त (योगी) का नहीं है

दिनका आहार ही युक्ताहार है, क्योंकि वही सम्यक् (बराबर) देखा जा सकता है (१) अदिवस (दिनके अतिरिक्त समयमें) आहार तो सम्यक् नहीं देखा जा सकता, इसलिये उसके हिंसायतनपना अनिवार्य होनेसे वह आहार युक्त (-योग्य) नहीं है; और (२) ऐसे आहारके सेवनमें अन्तरंग अशुद्धि व्यक्त होनेसे आहार युक्त (-योगी) का नहीं है

रसकी अपेक्षासे रहित आहार ही युक्ताहार है क्योंकि वही अन्तरंग शुद्धिसे सुन्दर है (१) रसकी अपेक्षावाला आहार तो अन्तरंग अशुद्धि द्वारा अत्यन्तरूपसे हिंसायतन किया जानेके कारण युक्त (-योग्य) नहीं है; और (२) उसका सेवन करनेवाला अन्तरंग अशुद्धि पूर्वक सेवन करता है इसलिये वह आहार युक्त (-योगी) का नहीं है

मधुमांस रहित आहार ही युक्ताहार है, क्योंकि उसीके हिंसायतनपनेका अभाव है (१) मधुमांस सहित आहार तो हिंसायतन होनेसे युक्त (-योग्य) नहीं है; और (२) ऐसे आहारसे सेवनमें अन्तरंग अशुद्धि व्यक्त होनेसे वह आहार युक्त (-योगी) का नहीं है यहाँ मधुमांस हिंसायतनका उपलक्षण है इसलिये (‘मधुमांस रहित आहार युक्ताहार है’ इस कथनसे ऐसा समझना चाहिये कि) समस्त हिंसायतनशून्य आहार ही युक्ताहार है ।।२२९।।