द्रव्याहिंसा च, सा द्विविधापि तत्र युक्ताहारे संभवति । यस्तु तद्विपरीतः स युक्ताहारो न भवति ।
भिक्षाचरणसे आहार ही युक्ताहार है, क्योंकि वही आरंभशून्य है । (१) अभिक्षाचरणसे (-भिक्षाचरण रहित) जो आहार उसमें आरम्भका सम्भव होनेसे हिंसायतनपना प्रसिद्ध है, अतः वह आहार युक्त (-योग्य) नहीं है; और (२) ऐसे आहारके सेवनमें (सेवन करनेवालेकी) अन्तरंग अशुद्धि व्यक्त (-प्रगट) होनेसे वह आहार युक्त (योगी) का नहीं है ।
दिनका आहार ही युक्ताहार है, क्योंकि वही सम्यक् (बराबर) देखा जा सकता है । (१) अदिवस (दिनके अतिरिक्त समयमें) आहार तो सम्यक् नहीं देखा जा सकता, इसलिये उसके हिंसायतनपना अनिवार्य होनेसे वह आहार युक्त (-योग्य) नहीं है; और (२) ऐसे आहारके सेवनमें अन्तरंग अशुद्धि व्यक्त होनेसे आहार युक्त (-योगी) का नहीं है ।
रसकी अपेक्षासे रहित आहार ही युक्ताहार है । क्योंकि वही अन्तरंग शुद्धिसे सुन्दर है । (१) रसकी अपेक्षावाला आहार तो अन्तरंग अशुद्धि द्वारा अत्यन्तरूपसे हिंसायतन किया जानेके कारण युक्त (-योग्य) नहीं है; और (२) उसका सेवन करनेवाला अन्तरंग अशुद्धि पूर्वक सेवन करता है इसलिये वह आहार युक्त (-योगी) का नहीं है ।
मधु – मांस रहित आहार ही युक्ताहार है, क्योंकि उसीके हिंसायतनपनेका अभाव है । (१) मधु – मांस सहित आहार तो हिंसायतन होनेसे युक्त (-योग्य) नहीं है; और (२) ऐसे आहारसे सेवनमें अन्तरंग अशुद्धि व्यक्त होनेसे वह आहार युक्त (-योगी) का नहीं है । यहाँ मधु – मांस हिंसायतनका उपलक्षण है इसलिये (‘मधु – मांस रहित आहार युक्ताहार है’ इस कथनसे ऐसा समझना चाहिये कि) समस्त हिंसायतनशून्य आहार ही युक्ताहार है ।।२२९।।