अथ श्रामण्यापरनाम्नो मोक्षमार्गस्यैकाग्ा्रयलक्षणस्य प्रज्ञापनम् । तत्र तन्मूलसाधनभूते
प्रथममागम एव व्यापारयति —
एयग्गगदो समणो एयग्गं णिच्छिदस्स अत्थेसु ।
णिच्छित्ती आगमदो आगमचेट्ठा तदो जेट्ठा ।।२३२।।
ऐकाग्ा्रयगतः श्रमणः ऐकाग्ा्रयं निश्चितस्य अर्थेषु ।
निश्चितिरागमत आगमचेष्टा ततो ज्येष्ठा ।।२३२।।
श्रमणो हि तावदैकाग्ा्रयगत एव भवति । ऐकाग्ा्रयं तु निश्चितार्थस्यैव भवति ।
अर्थनिश्चयस्त्वागमादेव भवति । तत आगम एव व्यापारः प्रधानतरः, न चान्या गतिरस्ति ।
यतो न खल्वागममन्तरेणार्था निश्चेतुं शक्यन्ते, तस्यैव हि त्रिसमयप्रवृत्तत्रिलक्षणसकलपदार्थ-
सार्थयाथात्म्यावगमसुस्थितान्तरंगगम्भीरत्वात् । न चार्थनिश्चयमन्तरेणैकाग्ा्रयं सिद्धयेत्,
निश्चयव्यवहारमोक्षमार्गोपसंहारमुख्यत्वेन ‘मुज्झदि वा’ इत्यादि चतुर्थस्थले गाथाद्वयम् । एवं
स्थलचतुष्टयेन तृतीयान्तराधिकारे समुदायपातनिका । तद्यथा — अथैकाग्यगतः श्रमणो भवति ।
४३०प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
अब, श्रामण्य जिसका दूसरा नाम है ऐसे एकाग्रतालक्षणवाले मोक्षमार्गका प्रज्ञापन है ।
उसमें प्रथम, उसके (-मोक्षमार्गके) मूल साधनभूत आगममें व्यापार (-प्रवृत्ति) कराते हैं : —
अन्वयार्थ : — [श्रमणः ] श्रमण [ऐकाग्रयतः ] एकाग्रताको प्राप्त होता है;
[ऐकाग्रयं ] एकाग्रता [अर्थेषु निश्चितस्य ] पदार्थोंके निश्चयवान्के होती है; [निश्चितिः ]
(पदार्थोंका) निश्चय [आगमतः ] आगम द्वारा होता है; [ततः ] इसलिये [आगमचेष्टा ]
आगममें व्यापार [ज्येष्ठा ] मुख्य है ।।२३२।।
टीका : — प्रथम तो, श्रमण वास्तवमें एकाग्रताको प्राप्त ही होता है; एकाग्रता पदार्थोंके
निश्चयवान्के ही होती है; और पदार्थोंका निश्चय आगम द्वारा ही होता है; इसलिये आगममें ही
व्यापार प्रधानतर (-विशेष प्रधान) है; दूसरी गति (-अन्य कोई मार्ग) नहीं है । उसका कारण
यह है कि : —
वास्तवमें आगमके बिना पदार्थोंका निश्चय नहीं किया जा सकता; क्योंकि आगम ही,
जिसके त्रिकाल (उत्पाद – व्यय – ध्रौव्यरूप) तीन लक्षण प्रवर्तते हैं ऐसे सकलपदार्थसार्थके
यथातथ्य ज्ञान द्वारा सुस्थित अंतरंगसे गम्भीर है (अर्थात् आगमका ही अंतरंग, सर्व पदार्थोंके
श्रामण्य ज्यां ऐकाग्य्रा, ने ऐकाग्य्रा वस्तुनिश्चये,
निश्चय बने आगम वडे, आगमप्रवर्तन मुख्य छे. २३२.