अथ श्रामण्यापरनाम्नो मोक्षमार्गस्यैकाग्ा्रयलक्षणस्य प्रज्ञापनम् । तत्र तन्मूलसाधनभूते प्रथममागम एव व्यापारयति —
श्रमणो हि तावदैकाग्ा्रयगत एव भवति । ऐकाग्ा्रयं तु निश्चितार्थस्यैव भवति । अर्थनिश्चयस्त्वागमादेव भवति । तत आगम एव व्यापारः प्रधानतरः, न चान्या गतिरस्ति । यतो न खल्वागममन्तरेणार्था निश्चेतुं शक्यन्ते, तस्यैव हि त्रिसमयप्रवृत्तत्रिलक्षणसकलपदार्थ- सार्थयाथात्म्यावगमसुस्थितान्तरंगगम्भीरत्वात् । न चार्थनिश्चयमन्तरेणैकाग्ा्रयं सिद्धयेत्, निश्चयव्यवहारमोक्षमार्गोपसंहारमुख्यत्वेन ‘मुज्झदि वा’ इत्यादि चतुर्थस्थले गाथाद्वयम् । एवं स्थलचतुष्टयेन तृतीयान्तराधिकारे समुदायपातनिका । तद्यथा — अथैकाग्यगतः श्रमणो भवति ।
अब, श्रामण्य जिसका दूसरा नाम है ऐसे एकाग्रतालक्षणवाले मोक्षमार्गका प्रज्ञापन है । उसमें प्रथम, उसके (-मोक्षमार्गके) मूल साधनभूत आगममें व्यापार (-प्रवृत्ति) कराते हैं : —
अन्वयार्थ : — [श्रमणः ] श्रमण [ऐकाग्र्यतः ] एकाग्रताको प्राप्त होता है; [ऐकाग्र्यं| ] एकाग्रता [अर्थेषु निश्चितस्य ] पदार्थोंके निश्चयवान्के होती है; [निश्चितिः ] (पदार्थोंका) निश्चय [आगमतः ] आगम द्वारा होता है; [ततः ] इसलिये [आगमचेष्टा ] आगममें व्यापार [ज्येष्ठा ] मुख्य है ।।२३२।।
टीका : — प्रथम तो, श्रमण वास्तवमें एकाग्रताको प्राप्त ही होता है; एकाग्रता पदार्थोंके निश्चयवान्के ही होती है; और पदार्थोंका निश्चय आगम द्वारा ही होता है; इसलिये आगममें ही व्यापार प्रधानतर (-विशेष प्रधान) है; दूसरी गति (-अन्य कोई मार्ग) नहीं है । उसका कारण यह है कि : —
वास्तवमें आगमके बिना पदार्थोंका निश्चय नहीं किया जा सकता; क्योंकि आगम ही, जिसके त्रिकाल (उत्पाद – व्यय – ध्रौव्यरूप) तीन लक्षण प्रवर्तते हैं ऐसे सकलपदार्थसार्थके यथातथ्य ज्ञान द्वारा सुस्थित अंतरंगसे गम्भीर है (अर्थात् आगमका ही अंतरंग, सर्व पदार्थोंके
निश्चय बने आगम वडे, आगमप्रवर्तन मुख्य छे. २३२.