अथागमहीनस्य मोक्षाख्यं कर्मक्षपणं न सम्भवतीति प्रतिपादयति — श्रमणो भवति । एयग्गं णिच्छिदस्स ऐकाग्ग्ग्ग्ग्ाा ाा ा
टङ्कोत्कीर्णज्ञायकैकस्वभावो योऽसौ परमात्मपदार्थस्तत्प्रभृतिष्वर्थेषु ।णिच्छित्ती आगमदो सा च सा च पदार्थनिश्चित्तिरागमतो भवति । तथाहि — जीवभेदकर्मभेदप्रतिपादकागमाभ्यासाद्भभवति, न केवल- मागमाभ्यासात्तथैवागमपदसारभूताच्चिदानन्दैकपरमात्मतत्त्वप्रकाशकादध्यात्माभिधानात्परमागमाच्च पदार्थ- परिच्छित्तिर्भवति । आगमचेट्ठा तदो जेट्ठा ततः कारणादेवमुक्तलक्षणागमे परमागमे च चेष्टा प्रवृत्तिः ज्येष्ठा श्रेष्ठा प्रशस्येत्यर्थः ।।२३२।। अथागमपरिज्ञानहीनस्य कर्मक्षपणं न भवतीति प्ररूपयति — आगमहीणो इसलिये उसे एक आत्माकी प्रतीति – अनुभूति – वृत्तिस्वरूप सम्यग्दर्शन – ज्ञान – चारित्र परिणतिरूप प्रवर्तमान जो १दृशिज्ञप्ति – वृत्तिरूप आत्मतत्त्वमें एकाग्रता है उसका अभाव होनेसे शुद्धात्मतत्वप्रवृत्तिरूप श्रामण्य हो (शुद्धात्मतत्वमें प्रवृत्तिरूप मुनिपना ही) नहीं होता ।
इससे (ऐसा कहा गया है कि) मोक्षमार्ग जिसका दूसरा नाम है ऐसे श्रामण्यकी सर्वप्रकारसे सिद्धि करनेके लिये मुमुक्षुको भगवान् अर्हन्त सर्वज्ञसे उपज्ञ (-स्वयं जानकर कहे गये) शब्दब्रह्ममें — जिसका कि अनेकान्तरूपी केतन (चिह्न – ध्वज – लक्षण) प्रगट है उसमें — निष्णात होना चाहिये ।
भावार्थ : — आगमके विना पदार्थोंका निश्चय नहीं होता, पदार्थोंके निश्चयके विना अश्रद्धाजनित तरलता, परकर्तृत्वाभिलाषाजनित क्षोभ और परभोक्तृत्त्वाभिलाषाजनित अस्थिरताके कारण एकाग्रता नहीं होती; और एकाग्रताके विना एक आत्मामें श्रद्धान – ज्ञान – वर्तनरूप प्रवर्तमान शुद्धात्मप्रवृत्ति न होनेसे मुनिपना नहीं होता, इसलिये मोक्षार्थीका प्रधान कर्त्तव्य २शब्दब्रह्मरूप आगममें प्रवीणता प्राप्त करना ही है ।।२३२।।
अब आगमहीनके मोक्षाख्य (मोक्ष नामसे कहा जानेवाला) कर्मक्षय नहीं होता, ऐसा प्रतिपादन करते हैं : — १. दृशि = दर्शन । २. शब्दब्रह्म = परमब्रह्मरूप वाच्यका वाचक द्रव्य श्रुत । [इन गाथाओंमें सर्वज्ञोपज्ञ समस्त द्रव्यश्रुतको
सारभूत चिदानन्द एक परमात्मतत्त्वके प्रकाशक अध्यात्मद्रव्यश्रुतको ‘परमागम’ कहा जाता है] ।]