शरीरादिद्रव्येषूपयोगमिश्रितमोहरागद्वेषादिभावेषु च स्वपरनिश्चायकागमोपदेशपूर्वकस्वानुभवा-
भावादयं परोऽयमात्मेति ज्ञानं सिद्धयेत्; तथा च त्रिसमयपरिपाटीप्रकटितविचित्रपर्याय-
स्वानुभवाभावात् ज्ञानस्वभावस्यैकस्य परमात्मनो ज्ञानमपि न सिद्धयेत् । परात्म-
माकलयतो वध्यघातकविभागाभावान्मोहादिद्रव्यभावकर्मणां क्षपणं न सिद्धयेत्; तथाच
शब्दाभिधेयै रागादिनानाविकल्पजालैर्निश्चयेन कर्मभिः सह भेदं न जानाति, तथैव कर्मारिविध्वंसक-
तथा उपयोगमिश्रित मोहरागद्वेषादिभावोंमें ‘यह पर है और यह आत्मा (-स्व) है’ ऐसा ज्ञान
सिद्ध नहीं होता; तथा उसे, ३परमात्मनिश्चायक आगमोपदेशपूर्वक स्वानुभवके अभावके कारण,
और (इसप्रकार) जो (१) परात्मज्ञानसे तथा (२) परमात्मज्ञानसे शून्य है उसे, (१) द्रव्यकर्मसे होनेवाले शरीरादिके साथ तथा ५तत्प्रत्ययी मोहरागद्वेषादि भावोंके साथ एकताका अनुभव करनेसे ६वध्यघातकके विभागका अभाव होनेसे मोहादिद्रव्यभावकर्मोंका क्षय सिद्ध नहीं होता, तथा (२) ७ज्ञेयनिष्ठतासे प्रत्येक वस्तुके उत्पाद – विनाशरूप परिणमित होनेके कारण १. अविविक्त = अविवेकवाली; विवेक शून्य, भेद – हीन; अभिन्न; एकमेक । २. स्वपरनिश्चायक = स्वपरका निश्चय करानेवाला (आगमोपदेश स्वपरका निश्चय करानेवाला है अर्थात्
स्वपरका निश्चय करनेमें निमित्तभूत है ।) ३. परमात्मनिश्चायक = परमात्माका निश्चय करनेवाला (अर्थात् ज्ञानस्वभाव परमात्माका निश्चय करनेमें
निमित्तभूत ।) ४. प्रतपित = प्रतापवान् (ज्ञानस्वभाव परमात्मा विश्वको ज्ञेयरूप करके तपता है — प्रतापवान् वर्तता है ।) ५. तत्प्रत्ययी = तत्सम्बन्धी, वह जिसका निमित्त है ऐसे । ६. वध्यघातक = हनन योग्य और हननकर्ता [आत्मा वध्य है और मोहादिभावकर्म घातक हैं । मोहादिद्रव्यकर्म
भी आत्माके घातमें निमित्तभूत होनेसे घातक कहलाते हैं ।]] ७. ज्ञेयनिष्ठ = ज्ञेयोंमें निष्ठावाला; ज्ञेयपरायण; ज्ञेयसम्मुख [अनादि संसारमें ज्ञप्ति ज्ञेयनिष्ठ होनेसे वह प्रत्येक