पीतोन्मत्तकस्येवावकीर्णविवेकस्याविविक्तेन ज्ञानज्योतिषा निरूपयतोऽप्यात्मात्मप्रदेशनिश्चित
शरीरादिद्रव्येषूपयोगमिश्रितमोहरागद्वेषादिभावेषु च स्वपरनिश्चायकागमोपदेशपूर्वकस्वानुभवा-
भावादयं परोऽयमात्मेति ज्ञानं सिद्धयेत्; तथा च त्रिसमयपरिपाटीप्रकटितविचित्रपर्याय-
प्राग्भारागाधगम्भीरस्वभावं विश्वमेव ज्ञेयीकृत्य प्रतपतः परमात्मनिश्चायकागमोपदेशपूर्वक-
स्वानुभवाभावात् ज्ञानस्वभावस्यैकस्य परमात्मनो ज्ञानमपि न सिद्धयेत् । परात्म-
परमात्मज्ञानशून्यस्य तु द्रव्यकर्मारब्धैः शरीरादिभिस्तत्प्रत्ययैर्मोहरागद्वेषादिभावैश्च सहैक्य-
माकलयतो वध्यघातकविभागाभावान्मोहादिद्रव्यभावकर्मणां क्षपणं न सिद्धयेत्; तथाच
ध्यात्मशास्त्रं चाजानन् पुरुषो रागादिदोषरहिताव्याबाधसुखादिगुणस्वरूपनिजात्मद्रव्यस्य भावकर्म-
शब्दाभिधेयै रागादिनानाविकल्पजालैर्निश्चयेन कर्मभिः सह भेदं न जानाति, तथैव कर्मारिविध्वंसक-
४३४प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
होनेसे १अविविक्त ज्ञानज्योतिसे यद्यपि देखता है तथापि, उसे २स्वपरनिश्चायक
आगमोपदेशपूर्वक स्वानुभवके अभावके कारण, आत्मामें और आत्मप्रदेशस्थित शरीरादिद्रव्योंमें
तथा उपयोगमिश्रित मोहरागद्वेषादिभावोंमें ‘यह पर है और यह आत्मा (-स्व) है’ ऐसा ज्ञान
सिद्ध नहीं होता; तथा उसे, ३परमात्मनिश्चायक आगमोपदेशपूर्वक स्वानुभवके अभावके कारण,
जिसके त्रिकाल परिपाटीमें विचित्र पर्यायोंका समूह प्रगट होता है ऐसे अगाध – गम्भीरस्वभाव
विश्वको ज्ञेयरूप करके ४प्रतपित ज्ञानस्वभावी एक परमात्माका ज्ञान भी सिद्ध नहीं होता ।
और (इसप्रकार) जो (१) परात्मज्ञानसे तथा (२) परमात्मज्ञानसे शून्य है उसे, (१)
द्रव्यकर्मसे होनेवाले शरीरादिके साथ तथा ५तत्प्रत्ययी मोहरागद्वेषादि भावोंके साथ एकताका
अनुभव करनेसे ६वध्यघातकके विभागका अभाव होनेसे मोहादिद्रव्यभावकर्मोंका क्षय सिद्ध नहीं
होता, तथा (२) ७ज्ञेयनिष्ठतासे प्रत्येक वस्तुके उत्पाद – विनाशरूप परिणमित होनेके कारण
१. अविविक्त = अविवेकवाली; विवेक शून्य, भेद – हीन; अभिन्न; एकमेक ।
२. स्वपरनिश्चायक = स्वपरका निश्चय करानेवाला (आगमोपदेश स्वपरका निश्चय करानेवाला है अर्थात्
स्वपरका निश्चय करनेमें निमित्तभूत है ।)
३. परमात्मनिश्चायक = परमात्माका निश्चय करनेवाला (अर्थात् ज्ञानस्वभाव परमात्माका निश्चय करनेमें
निमित्तभूत ।)
४. प्रतपित = प्रतापवान् (ज्ञानस्वभाव परमात्मा विश्वको ज्ञेयरूप करके तपता है — प्रतापवान् वर्तता है ।)
५. तत्प्रत्ययी = तत्सम्बन्धी, वह जिसका निमित्त है ऐसे ।
६. वध्यघातक = हनन योग्य और हननकर्ता [आत्मा वध्य है और मोहादिभावकर्म घातक हैं । मोहादिद्रव्यकर्म
भी आत्माके घातमें निमित्तभूत होनेसे घातक कहलाते हैं ।]]
७. ज्ञेयनिष्ठ = ज्ञेयोंमें निष्ठावाला; ज्ञेयपरायण; ज्ञेयसम्मुख [अनादि संसारमें ज्ञप्ति ज्ञेयनिष्ठ होनेसे वह प्रत्येक
पदार्थकी उत्पत्ति – विनाशरूप परिणमित होनेसे परिवर्तनको प्राप्त होती रहती है । परमात्मनिष्ठताके बिना
ज्ञप्तिका वह परिवर्तन अनिवार्य है ।]]