Pravachansar (Hindi). Gatha: 235.

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विभागमारचय्य निर्भिन्नमहामोहाः सन्तः परमात्मानमवाप्य सततं ज्ञाननिष्ठा एवावतिष्ठन्ते
अतः सर्वमप्यागमचक्षुषैव मुमुक्षूणां द्रष्टव्यम् ।।२३४।।
अथागमचक्षुषा सर्वमेव द्रश्यत एवेति समर्थयति
सव्वे आगमसिद्धा अत्था गुणपज्जएहिं चित्तेहिं
जाणंति आगमेण हि पेच्छित्ता ते वि ते समणा ।।२३५।।
सर्वे आगमसिद्धा अर्था गुणपर्यायैश्चित्रैः
जानन्त्यागमेन हि द्रष्टवा तानपि ते श्रमणाः ।।२३५।।
आगमेन तावत्सर्वाण्यपि द्रव्याणि प्रमीयन्ते, विस्पष्टतर्कणस्य सर्वद्रव्याणाम-
विरुद्धत्वात्; विचित्रगुणपर्यायविशिष्टानि च प्रतीयन्ते, सहक्रमप्रवृत्तानेकधर्मव्यापका-
परमागमोपदेशादुत्पन्नं निर्विकारं मोक्षार्थिभिः स्वसंवेदनज्ञानमेव भावनीयमिति ।।२३४।। अथागम-
लोचनेन सर्वं द्रश्यत इति प्रज्ञापयतिसव्वे आगमसिद्धा सर्वेऽप्यागमसिद्धा आगमेन ज्ञाताः के ते
अत्था विशुद्धज्ञानदर्शनस्वभावो योऽसौ परमात्मपदार्थस्तत्प्रभृतयोऽर्थाः कथं सिद्धाः गुणपज्जएहिं
कहानजैनशास्त्रमाला ]
चरणानुयोगसूचक चूलिका
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इससे (ऐसा कहा जाता है कि) मुमुक्षुओंको सब कुछ आगमरूप चक्षु द्वारा ही देखना
चाहिये ।।२३४।।
अब, यह समर्थन करते हैं कि आगमरूप चक्षुसे सब कुछ दिखाई देता ही है :
अन्वयार्थ :[सर्वे अर्थाः ] समस्त पदार्थ [चित्रैः गुणपर्यायैः ] विचित्र
(अनेक प्रकारकी) गुणपर्यायों सहित [आगमसिद्धाः ] आगमसिद्ध हैं [तान् अपि ] उन्हें भी
[ते श्रमणाः ] वे श्रमण [आगमेन हि दृष्टा ] आगम द्वारा वास्तवमें देखकर [जानन्ति ] जानते
हैं
।।२३५।।
टीका :प्रथम तो, आगम द्वारा सभी द्रव्य प्रमेय (ज्ञेय) होते हैं, क्योंकि सर्वद्रव्य
विस्पष्ट तर्कणासे अविरुद्ध हैं, (सर्व द्रव्य आगमानुसार जो विशेष स्पष्ट तर्क उसके साथ
मेलवाले हैं, अर्थात् वे आगमानुसार विस्पष्ट विचारसे ज्ञात हों ऐसे हैं ) और आगमसे वे द्रव्य
विचित्र गुणपर्यायवाले प्रतीत होते हैं, क्योंकि आगमको सहप्रवृत्त और क्रमप्रवृत्त अनेक धर्मोंमें
सौ चित्र गुणपर्याययुक्त पदार्थ आगमसिद्ध छे;
ते सर्वने जाणे श्रमण ए देखीने आगम वडे. २३५
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