Pravachansar (Hindi). Gatha: 10.

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अथ परिणामं वस्तुस्वभावत्वेन निश्चिनोति
णत्थि विणा परिणामं अत्थो अत्थं विणेह परिणामो
दव्वगुणपज्जयत्थो अत्थो अत्थित्तणिव्वत्तो ।।१०।।
नास्ति विना परिणाममर्थोऽर्थं विनेह परिणामः
द्रव्यगुणपर्ययस्थोऽर्थोऽस्तित्वनिर्वृत्तः ।।१०।।
न खलु परिणाममन्तरेण वस्तु सत्तामालम्बते वस्तुनो द्रव्यादिभिः परिणामात
पृथगुपलम्भाभावान्निःपरिणामस्य खरशृंगकल्पत्वाद् द्रश्यमानगोरसादिपरिणामविरोधाच्च
भावार्थः ।।।। अथ नित्यैकान्तक्षणिकैकान्तनिषेधार्थं परिणामपरिणामिनोः परस्परं कथंचिदभेदं
दर्शयतिणत्थि विणा परिणामं अत्थो मुक्तजीवे तावत्कथ्यते, सिद्धपर्यायरूपशुद्धपरिणामं विना
शुद्धजीवपदार्थो नास्ति कस्मात् संज्ञालक्षणप्रयोजनादिभेदेऽपि प्रदेशभेदाभावात् अत्थं विणेह
परिणामो मुक्तात्मपदार्थं विना इह जगति शुद्धात्मोपलम्भलक्षणः सिद्धपर्यायरूपः शुद्धपरिणामो नास्ति
कस्मात् संज्ञादिभेदेऽपि प्रदेशभेदाभावात् दव्वगुणपज्जयत्थो आत्मस्वरूपं द्रव्यं, तत्रैव केवलज्ञानादयो
गुणाः, सिद्धरूपः पर्यायश्च, इत्युक्तलक्षणेषु द्रव्यगुणपर्यायेषु तिष्ठतीति द्रव्यगुणपर्यायस्थो भवति
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञानतत्त्व -प्रज्ञापन
१५
सिद्धान्त ग्रन्थोंमें जीवके असंख्य परिणामोंको मध्यम वर्णनसे चौदह गुणस्थानरूप कहा
गया है उन गुणस्थानोंको संक्षेपसे ‘उपयोग’ रूप वर्णन करते हुए, प्रथम तीन गुणस्थानोंमें
तारतम्यपूर्वक (घटता हुआ) अशुभोपयोग, चौथे से छट्ठे गुणस्थान तक तारतम्य पूर्वक (बढ़ता
हुआ) शुभोपयोग, सातवेंसे बारहवें गुणस्थान तक तारतम्य पूर्वक शुद्धोपयोग और अन्तिम दो
गुणस्थानोंमें शुद्धोपयोगका फल कहा गया है,
ऐसा वर्णन कथंचित् हो सकता है ।।।।
अब परिणाम वस्तुका स्वभाव है यह निश्चय करते हैं :
अन्वयार्थ :[इह ] इस लोकमें [परिणामं विना ] परिणामके बिना [अर्थः नास्ति ]
पदार्थ नहीं है, [अर्थं विना ] पदार्थके बिना [परिणामः ] परिणाम नहीं है; [अर्थः ] पदार्थ
[द्रव्यगुणपर्ययस्थः ] द्रव्य -गुण -पर्यायमें रहनेवाला और [अस्तित्वनिर्वृत्तः ] (उत्पाद-
व्ययध्रौव्यमय) अस्तित्वसे बना हुआ है
।।१०।।
टीका :परिणामके बिना वस्तु अस्तित्व धारण नहीं करती, क्योंकि वस्तु द्रव्यादिके
द्वारा (द्रव्य -क्षेत्र -काल -भावसे) परिणामसे भिन्न अनुभवमें (देखनेमें) नहीं आती, क्योंकि
परिणाम विण न पदार्थ, ने न पदार्थ विण परिणाम छे;
गुण -द्रव्य -पर्ययस्थित ने अस्तित्वसिद्ध पदार्थ छे
.१०.