Pravachansar (Hindi).

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४८६प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
ये अयथागृहीतार्था एते तत्त्वमिति निश्चिताः समये
अत्यन्तफलसमृद्धं भ्रमन्ति ते अतः परं कालम् ।।२७१।।

ये स्वयमविवेकतोऽन्यथैव प्रतिपद्यार्थानित्थमेव तत्त्वमिति निश्चयमारचयन्तः सततं समुपचीयमानमहामोहमलमलीमसमानसतया नित्यमज्ञानिनो भवन्ति, ते खलु समये स्थिता अप्यनासादितपरमार्थश्रामण्यतया श्रमणाभासाः सन्तोऽनन्तकर्मफलोपभोगप्राग्भारभयंकर- मनन्तकालमनन्तभावान्तरपरावर्तैरनवस्थितवृत्तयः संसारतत्त्वमेवावबुध्यताम् ।।२७१।। भमंति ते तो परं कालं अत्यन्तफलसमृद्धं भ्रमन्ति ते अतः परं कालम् द्रव्यक्षेत्रकालभवभावपञ्चप्रकार- संसारपरिभ्रमणरहितशुद्धात्मस्वरूपभावनाच्युताः सन्तः परिभ्रमन्ति कम् परं कालं अनन्तकालम् नारकादिदुःखरूपात्यन्तफलसमृद्धम् पुनरपि कथंभूतम् अतो वर्तमानकालात्परं भाविनमिति कथंभूतम् अयमत्रार्थःइत्थंभूतसंसारपरिभ्रमणपरिणतपुरुषा एवाभेदेन संसारस्वरूपं ज्ञातव्य- मिति ।।२७१।। अथ मोक्षस्वरूपं प्रकाशयतिअजधाचारविजुत्तो निश्चयव्यवहारपञ्चाचारभावना-

अन्वयार्थ :[ये ] जो [समये ] भले ही समयमें हों (-भले ही वे द्रव्यलिंगीके रूपमें जिनमतमें हों) तथापि वे [एते तत्त्वम् ] ‘यह तत्त्व है (वस्तुस्वरूप ऐसा ही है)’ [इति निश्चिताः ] इसप्रकार निश्चयवान वर्तते हुए [अयथागृहीतार्थाः ] पदार्थोंको अयथार्थरूपसे ग्रहण करते हैं (-जैसे नहीं हैं वैसा समझते हैं ), [ते ] वे [अत्यन्तफलसमृद्धम् ] अत्यन्तफलसमृद्ध (अनन्त कर्मफलोंसे भरे हुए) ऐसे [अतः परं कालं ] अबसे आगामी कालमें [भ्रमन्ति ] परिभ्रमण करेंगे ।।२७१।।

टीका :जो स्वयं अविवेकसे पदार्थोंको अन्यथा ही अंगीकृत करके (-अन्य प्रकारसे ही समझकर) ‘ऐसा ही तत्त्व (वस्तुस्वरूप) है’ ऐसा निश्चय करते हुए, सतत एकत्रित किये जानेवाले महा मोहमलसे मलिन मनवाले होनेसे नित्य अज्ञानी हैं, वे भले ही समयमें (-द्रव्यलिंगी रूपसे जिनमार्गमें) स्थित हों तथापि परमार्थ श्रामण्यको प्राप्त न होनेसे वास्तवमें श्रमणाभास वर्तते हुए अनन्त कर्मफलकी उपभोगराशिसे भयंकर ऐसे अनन्तकाल तक अनन्त भावान्तररूप परावर्त्तनोंसे अनवस्थित वृत्तिवाले रहनेसे, उनको संसारतत्त्व ही जानना ।।२७१।। १. अनवस्थित = अस्थिर [मिथ्यादृष्टियोंने भले ही द्रव्यलिंग धारण किया हो तथापि उनके अनन्तकाल तक

अनन्त भिन्नभिन्न भावरूपसेभावान्तररूपसे परावर्तन होते रहनेसे वे अस्थिर परिणतिवाले रहेंगे, और
इसलिये वे संसारतत्त्व ही हैं ]