Pravachansar (Hindi). Parishista.

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ननु कोऽयमात्मा कथं चावाप्यत इति चेत्, अभिहितमेतत् पुनरप्यभिधीयते आत्मा
हि तावच्चैतन्यसामान्यव्याप्तानन्तधर्माधिष्ठात्रेकं द्रव्यमनन्तधर्मव्यापकानन्तनयव्याप्येकश्रुत-
ज्ञानलक्षणप्रमाणपूर्वकस्वानुभवप्रमीयमाणत्वात
तत्तु द्रव्यनयेन पटमात्रवच्चिन्मात्रम् १
पर्यायनयेन तन्तुमात्रवद्दर्शनज्ञानादिमात्रम् २ अस्तित्वनयेनायोमयगुणकार्मुकान्तरालवर्ति-
संहितावस्थलक्ष्योन्मुखविशिखवत् स्वद्रव्यक्षेत्रकालभावैरस्तित्ववत् ३ नास्तित्वनयेनानयोमया-
गुणकार्मुकान्तरालवर्त्यसंहितावस्थालक्ष्योन्मुखप्राक्त नविशिखवत् परद्रव्यक्षेत्रकालभावैर्नास्ति-
अत्राह शिष्यःपरमात्मद्रव्यं यद्यपि पूर्वं बहुधा व्याख्यातम्, तथापि संक्षेपेण पुनरपि
कथ्यतामिति भगवानाहकेवलज्ञानाद्यनन्तगुणानामाधारभूतं यत्तदात्मद्रव्यं भण्यते तस्य च नयैः
कहानजैनशास्त्रमाला ]
परिशिष्ट
४९३
[अब टीकाकार श्री अमृतचन्द्राचार्यदेव परिशिष्टरूपसे कुछ कहते हैं : ]
‘यह आत्मा कौन है (-कैसा है) और कैसे प्राप्त किया जाता है’ ऐसा प्रश्न किया
जाय तो इसका उत्तर (पहले ही) कहा जा चुका है और (यहाँ) पुनः कहते हैं :
प्रथम तो, आत्मा वास्तवमें चैतन्यसामान्यसे व्याप्त अनन्त धर्मोंका अधिष्ठाता (स्वामी)
एक द्रव्य है, क्योंकि अनन्त धर्मोंमें व्याप्त होनेवाले जो अनन्त नय हैं उनमें व्याप्त होनेवाला
जो एक श्रुतज्ञानस्वरूप प्रमाण है, उस प्रमाणपूर्वक स्वानुभवसे (वह आत्मद्रव्य) प्रमेय होता
है (-ज्ञात होता है)
वह आत्मद्रव्य द्रव्यनयसे, पटमात्रकी भाँति, चिन्मात्र है (अर्थात् आत्मा द्रव्यनयसे
चैतन्यमात्र है, जैसे वस्त्र वस्त्रमात्र है तदनुसार ) १.
आत्मद्रव्य पर्यायनयसे, तंतुमात्रकी भाँति, दर्शनज्ञानादिमात्र है (अर्थात् आत्मा
पर्यायनयसे दर्शनज्ञानचारित्रादिमात्र है, जैसे वस्त्र तंतुमात्र है ) २.
आत्मद्रव्य अस्तित्वनयसे स्वद्रव्यक्षेत्रकालभावसे अस्तित्ववाला है; लोहमय,
डोरी और धनुषके मध्यमें स्थित, संधानदशामें रहे हुए और लक्ष्योन्मुख बाणकी भाँति (जैसे
कोई बाण स्वद्रव्यसे लोहमय है, स्वक्षेत्रसे डोरी और धनुषके मध्यमें स्थित है, स्वकालसे संधान
दशामें है, अर्थात् धनुष पर चढ़ाकर खेंची हुई दशामें है, और स्वभावसे लक्ष्योन्मुख है अर्थात्
निशानकी ओर है, उसीप्रकार आत्मा अस्तित्वनयसे स्वचतुष्टयसे अस्तित्ववाला है
) ३.
आत्मद्रव्य नास्तित्वनयसे परद्रव्यक्षेत्रकालभावसे नास्तित्ववाला है; अलोहमय,
डोरी और धनुषके मध्यमें नहीं स्थित, संधानदशामें न रहे हुए और अलक्ष्योन्मुख ऐसे पहलेके
बाणकी भाँति
(जैसे पहलेका बाण अन्य बाणके द्रव्यकी अपेक्षासे अलोहमय है, अन्य
बाणके क्षेत्रकी अपेक्षासे डोरी और धनुषके मध्यमें स्थित नहीं है, अन्य बाणके कालकी
अपेक्षासे संधानदशामें नहीं रहा हुआ और अन्य बाणके भावकी अपेक्षासे अलक्ष्योन्मुख है,