आत्मद्रव्य अस्तित्वनास्तित्वनयसे क्रमशः स्वपरद्रव्य – क्षेत्र – काल – भावसे अस्तित्व – नास्तित्ववाला है; — लोहमय तथा अलोहमय, डोरी और धनुषके मध्यमें स्थित तथा डोरी और धनुषके मध्यमें नहीं स्थित, संधान अवस्थामें रहे हुए तथा संधान अवस्थामें न रहे हुए और लक्ष्योन्मुख तथा अलक्ष्योन्मुख ऐसे पहलेके बाणकी भाँति । (जैसे पहलेका बाण क्रमशः स्वचतुष्टयकी तथा परचतुष्टयकी अपेक्षासे लोहमयादि और अलोहमयादि है, उसीप्रकार आत्मा अस्तित्व – नास्तित्वनयसे क्रमशः स्वचतुष्टय और परचतुष्टयकी अपेक्षासे अस्तित्ववाला और नास्तित्ववाला है ।) ५.
आत्मद्रव्य अव्यक्तव्यनयसे युगपत् स्वपरद्रव्य – क्षेत्र – काल – भावसे अवक्तव्य है; — लोहमय तथा अलोहमय, डोरी और धनुषके मध्यमें स्थित तथा डोरी और धनुषके मध्यमें नहीं स्थित, संधान अवस्थामें रहे हुए तथा संधान अवस्थामें न रहे हुए और लक्ष्योन्मुख तथा अलक्ष्योन्मुख ऐसे पहलेकी बाणकी भाँति । (जैसे पहलेका बाण युगपत् स्वचतुष्टयकी और परचतुष्टयकी अपेक्षासे युगपत् लोहमयादि तथा अलोहमयादि होनेसे अवक्तव्य है, उसीप्रकार आत्मा अवक्तव्यनयसे युगपत् स्वचतुष्टय और परचतुष्टयकी अपेक्षासे अवक्तव्य है ।) ६.
आत्मद्रव्य अस्तित्व – अवक्तव्य नयसे स्वद्रव्य – क्षेत्र – काल – भावसे तथा युगपत् स्वपरद्रव्य – क्षेत्र – काल – भावसे अस्तित्ववाला – अवक्तव्य है; ( – स्वचतुष्टयसे) लोहमय, डोरी और धनुषके मध्यमें स्थित, संधान अवस्थामें रहे हुए और लक्ष्योन्मुख ऐसे तथा (युगपत् स्व- परचतुष्टसे) लोहमय तथा अलोहमय, डोरी और धनुषके मध्यमें स्थित तथा डोरी और धनुषके मध्यमें नहीं स्थित, संधान अवस्थाएं रहे हुए तथा संधान अवस्थामें रहे हुए और लक्ष्योन्मुख तथा अलक्ष्योन्मुख ऐसे पहलेके बाणकी भाँति । [जैसे पहलेका बाण (१) स्वचतुष्टयसे तथा (२) एक ही साथ स्वपरचतुष्टयकी अपेक्षासे (१) लोहमयादि तथा (२) अवक्तव्य है,