Pravachansar (Hindi).

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वस्थलक्ष्योन्मुखालक्ष्योन्मुखप्राक्तनविशिखवत् स्वद्रव्यक्षेत्रकालभावैर्युगपत्स्वपरद्रव्यक्षेत्रकाल-
भावैश्चास्तित्ववदवक्त व्यम् ७ नास्तित्वावक्तव्यनयेनानयोमयागुणकार्मुकान्तरालवर्त्यसंहिता-
वस्थालक्ष्योन्मुखायोमयानयोमयगुणकार्मुकान्तरालवर्त्यगुणकार्मुकान्तरालवर्तिसंहितावस्थासंहिता-
वस्थलक्ष्योन्मुखालक्ष्योन्मुखप्राक्तनविशिखवत
् परद्रव्यक्षेत्रकालभावैर्युगपत्स्वपरद्रव्यक्षेत्रकाल-
भावैश्च नास्तित्ववदवक्त व्यम् ८ अस्तित्वनास्तित्वावक्तव्यनयेनायोमयगुणकार्मुकान्तराल-
वर्तिसंहितावस्थलक्ष्योन्मुखानयोमयागुणकार्मुकान्तरालवर्त्यसंहितावस्थालक्ष्योन्मुखायोमयानयो-
भूतम् तदेवाशुद्धसद्भूतव्यवहारनयेनाशुद्धस्पर्शरसगन्धवर्णानामाधारभूतव्द्यणुकादिस्कन्धवन्मतिज्ञानादि-
विभावगुणानामाधारभूतम् अनुपचरितासद्भूतव्यवहारनयेन व्द्यणुकादिस्कन्धेषु संश्लेशबन्धस्थित-
कहानजैनशास्त्रमाला ]
परिशिष्ट
४९५
उसीप्रकार आत्मा अस्तित्वअवक्तव्यनयसे (१) स्वचतुष्टयकी तथा (२) युगपत्
स्वपरचतुष्टयकी अपेक्षासे (१) अस्तित्ववाला तथा (२) अवक्तव्य है
] ७.
आत्मद्रव्य नास्तित्वअवक्तव्यनयसे परद्रव्यक्षेत्रकाल भावसे तथा युगपत्
स्वपरद्रव्यक्षेत्रकालभावसे नास्तित्ववालाअवक्तव्य है; (परचतुष्टयसे) अलोहमय,
डोरी और धनुषके मध्यमें नहीं स्थित, संधान अवस्थामें रहे हुए और अलक्ष्योन्मुख ऐसे तथा
(युगपत् स्वपरचतुष्टयसे) लोहमय तथा अलोहमय, डोरी और धनुषके मध्यमें स्थित तथा डोरी
और धनुषके मध्यमें नहीं स्थित, संधान अवस्थामें रहे हुए तथा संधान अवस्थामें न रहे हुए
और लक्ष्योन्मुख तथा अलक्ष्योन्मुख ऐसे पहलेके बाणकी भाँति
[जैसे पहलेका बाण
(१) परचतुष्टयकी तथा (२) एक ही साथ स्वपरचतुष्टयकी अपेक्षासे (१) अलोहमयादि तथा
(२) अवक्तव्य है, उसीप्रकार आत्मा नास्तित्व
अवक्तव्यनयसे (१) परचतुष्टयकी तथा
(२) युगपत् स्वपरचतुष्टयकी अपेक्षासे (१) नास्तित्ववाला तथा (२) अवक्तव्य है ] ८.
आत्मद्रव्य अस्तित्वनास्तित्वअवक्तव्यनयसे स्वद्रव्यक्षेत्रकालभावसे, परद्रव्यक्षेत्र
कालभावसे तथा युगपत् स्वपरद्रव्यक्षेत्रकालभावसे अस्तित्ववालानास्तित्ववाला
अवक्तव्य है; (स्वचतुष्टयसे) लोहमय, डोरी और धनुषके मध्यमें स्थित, संधान अवस्थामें
रहे हुए और लक्ष्योन्मुख ऐसे, (परचतुष्टयसे) अलोहमय, डोरी और धनुषके मध्यमें नहीं
स्थित, संधान अवस्थामें न रहे हुए और अलक्ष्योन्मुख ऐसे तथा (युगपत् स्वपरचतुष्टयसे)
लोहमय तथा अलोहमय, डोरो और धनुषके मध्यमें स्थित तथा प्रत्यञ्चा और धनुषके मध्यमें
नहीं स्थित, संधान अवस्थामें रहे हुए तथा संधान अवस्थामें न रहे हुए और लक्ष्योन्मुख तथा
अलक्ष्योन्मुख ऐसे पहलेके बाणकी भाँति
[जैसे पहलेका बाण (१) स्वचतुष्टयकी,
(२) परचतुष्टयकी तथा (३) युगपत् स्वपरचतुष्टयकी अपेक्षासे (१) लोहमय,
(२) अलोहमय तथा (३) अवक्तव्य है, उसीप्रकार आत्मा अस्तित्व
नास्तित्व
अवक्तव्यनयसे (१) स्वचतुष्टयकी, (२) परचतुष्टयकी तथा (३) युगपत् स्वपरचतुष्टयकी