Pravachansar (Hindi).

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संबन्धोऽस्ति, यतः शुद्धात्मस्वभावलाभाय सामग्रीमार्गणव्यग्रतया परतन्त्रर्भूयते ।।१६।।
समाश्रियमाणत्वात्संप्रदानं भवति तथैव पूर्वमत्यादिज्ञानविकल्पविनाशेऽप्यखण्डितैकचैतन्य-
प्रकाशेनाविनश्वरत्वादपादानं भवति निश्चयशुद्धचैतन्यादिगुणस्वभावात्मनः स्वयमेवाधारत्वादधिकरणं
भवतीत्यभेदषट्कारकीरूपेण स्वत एव परिणममाणः सन्नयमात्मा परमात्मस्वभाव-
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञानतत्त्व -प्रज्ञापन
२७
भावार्थ :कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण नामक छह कारक
हैं जो स्वतंत्रतया -स्वाधीनतासे करता है वह कर्त्ता है; कर्त्ता जिसे प्राप्त करता है वह कर्म
है; साधकतम अर्थात् उत्कृष्ट साधनको करण कहते हैं; कर्म जिसे दिया जाता है अथवा जिसके
लिये किया जाता है वह सम्प्रदान है; जिसमेंसे कर्म किया जाता है, वह ध्रुववस्तु अपादान
है, और जिसमें अर्थात् जिसके आधारसे कर्म किया जाता है वह अधिकरण है
यह छह कारक
व्यवहार और निश्चयके भेदसे दो प्रकारके हैं जहाँ परके निमित्तसे कार्यकी सिद्धि कहलाती
है वहा व्यवहार कारक हैं, और जहाँ अपने ही उपादान कारणसे कार्यकी सिद्धि कही जाती
है वहाँ निश्चयकारक हैं
व्यवहार कारकोंका दृष्टान्त इसप्रकार हैकुम्हार कर्ता है; घड़ा कर्म है; दंड, चक्र,
चीवर इत्यादि करण है; कुम्हार जल भरनेवालेके लिये घड़ा बनाता है, इसलिये जल भरनेवाला
सम्प्रदान है; टोकरीमेंसे मिट्टी लेकर घड़ा बनाता है, इसलिये टोकरी अपादान है, और पृथ्वीके
आधार पर घड़ा बनाता है, इसलिये पृथ्वी अधिकरण है
यहाँ सभी कारक भिन्न -भिन्न हैं
अन्य कर्ता है; अन्य कर्म है; अन्य करण है; अन्य सम्प्रदान; अन्य अपादान और अन्य
अधिकरण है
परमार्थतः कोई द्रव्य किसीका कर्ताहर्ता नहीं हो सकता, इसलिये यह छहों
व्यवहार कारक असत्य हैं वे मात्र उपचरित असद्भूत व्यवहारनयसे कहे जाते हैं निश्चयसे
किसी द्रव्यका अन्य द्रव्यके साथ कारणताका सम्बन्ध है ही नहीं
निश्चय कारकोंका दृष्टान्त इस प्रकार है :मिट्टी स्वतंत्रतया घटरूप कार्यको प्राप्त होती
है इसलिए मिट्टी कर्ता है और घड़ा कर्म है अथवा, घड़ा मिट्टीसे अभिन्न है इसलिये मिट्टी
स्वयं ही कर्म है; अपने परिणमन स्वभाव से मिट्टीने घड़ा बनाया इसलिये मिट्टी स्वयं ही करण
है; मिट्टीने घड़ारूप कर्म अपनेको ही दिया इसलिए मिट्टी स्वयं सम्प्रदान है; मिट्टीने अपनेमेंसे
पिंडरूप अवस्था नष्ट करके घटरूप कर्म किया और स्वयं ध्रुव बनी रही इसलिए वह स्वयं
ही अपादान है; मिट्टीने अपने ही आधारसे घड़ा बनाया इसलिये स्वयं ही अधिकरण है
इसप्रकार निश्चयसे छहों कारक एक ही द्रव्यमें है परमार्थतः एक द्रव्य दूसरे की सहायता
नहीं कर सकता और द्रव्य स्वयं ही, अपनेको, अपनेसे, अपने लिए, अपनेमेंसे, अपनेमें करता
है इसलिये निश्चय छह कारक ही परम सत्य हैं
उपरोक्त प्रकारसे द्रव्य स्वयं ही अपनी अनन्त शक्तिरूप सम्पदासे परिपूर्ण है इसलिये
स्वयं ही छह कारकरूप होकर अपना कार्य करनेके लिए समर्थ है, उसे बाह्य सामग्री कोई