भावार्थ : — कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण नामक छह कारक हैं । जो स्वतंत्रतया -स्वाधीनतासे करता है वह कर्त्ता है; कर्त्ता जिसे प्राप्त करता है वह कर्म है; साधकतम अर्थात् उत्कृष्ट साधनको करण कहते हैं; कर्म जिसे दिया जाता है अथवा जिसके लिये किया जाता है वह सम्प्रदान है; जिसमेंसे कर्म किया जाता है, वह ध्रुववस्तु अपादान है, और जिसमें अर्थात् जिसके आधारसे कर्म किया जाता है वह अधिकरण है । यह छह कारक व्यवहार और निश्चयके भेदसे दो प्रकारके हैं । जहाँ परके निमित्तसे कार्यकी सिद्धि कहलाती है वहा व्यवहार कारक हैं, और जहाँ अपने ही उपादान कारणसे कार्यकी सिद्धि कही जाती है वहाँ निश्चयकारक हैं ।
व्यवहार कारकोंका दृष्टान्त इसप्रकार है — कुम्हार कर्ता है; घड़ा कर्म है; दंड, चक्र, चीवर इत्यादि करण है; कुम्हार जल भरनेवालेके लिये घड़ा बनाता है, इसलिये जल भरनेवाला सम्प्रदान है; टोकरीमेंसे मिट्टी लेकर घड़ा बनाता है, इसलिये टोकरी अपादान है, और पृथ्वीके आधार पर घड़ा बनाता है, इसलिये पृथ्वी अधिकरण है । यहाँ सभी कारक भिन्न -भिन्न हैं । अन्य कर्ता है; अन्य कर्म है; अन्य करण है; अन्य सम्प्रदान; अन्य अपादान और अन्य अधिकरण है । परमार्थतः कोई द्रव्य किसीका कर्ता – हर्ता नहीं हो सकता, इसलिये यह छहों व्यवहार कारक असत्य हैं । वे मात्र उपचरित असद्भूत व्यवहारनयसे कहे जाते हैं । निश्चयसे किसी द्रव्यका अन्य द्रव्यके साथ कारणताका सम्बन्ध है ही नहीं ।
निश्चय कारकोंका दृष्टान्त इस प्रकार है : — मिट्टी स्वतंत्रतया घटरूप कार्यको प्राप्त होती है इसलिए मिट्टी कर्ता है और घड़ा कर्म है । अथवा, घड़ा मिट्टीसे अभिन्न है इसलिये मिट्टी स्वयं ही कर्म है; अपने परिणमन स्वभाव से मिट्टीने घड़ा बनाया इसलिये मिट्टी स्वयं ही करण है; मिट्टीने घड़ारूप कर्म अपनेको ही दिया इसलिए मिट्टी स्वयं सम्प्रदान है; मिट्टीने अपनेमेंसे पिंडरूप अवस्था नष्ट करके घटरूप कर्म किया और स्वयं ध्रुव बनी रही इसलिए वह स्वयं ही अपादान है; मिट्टीने अपने ही आधारसे घड़ा बनाया इसलिये स्वयं ही अधिकरण है । इसप्रकार निश्चयसे छहों कारक एक ही द्रव्यमें है । परमार्थतः एक द्रव्य दूसरे की सहायता नहीं कर सकता और द्रव्य स्वयं ही, अपनेको, अपनेसे, अपने लिए, अपनेमेंसे, अपनेमें करता है इसलिये निश्चय छह कारक ही परम सत्य हैं ।
उपरोक्त प्रकारसे द्रव्य स्वयं ही अपनी अनन्त शक्तिरूप सम्पदासे परिपूर्ण है इसलिये स्वयं ही छह कारकरूप होकर अपना कार्य करनेके लिए समर्थ है, उसे बाह्य सामग्री कोई