यदि ते न सन्त्यर्था ज्ञाने ज्ञानं न भवति सर्वगतम् ।
सर्वगतं वा ज्ञानं कथं न ज्ञानस्थिता अर्थाः ।।३१।।
यदि खलु निखिलात्मीयज्ञेयाकारसमर्पणद्वारेणावतीर्णाः सर्वेऽर्था न प्रतिभान्ति ज्ञाने
तदा तन्न सर्वगतमभ्युपगम्येत । अभ्युपगम्येत वा सर्वगतं, तर्हि साक्षात् संवेदनमुकुरुन्द-
भूमिकावतीर्ण(प्रति)बिम्बस्थानीयस्वीयस्वीयसंवेद्याकारकारणानि परम्परया प्रतिबिम्बस्थानीय-
संवेद्याकारकारणानीति कथं न ज्ञानस्थायिनोऽर्था निश्चीयन्ते ।। ३१ ।।
वा णाणं व्यवहारेण सर्वगतं ज्ञानं सम्मतं चेद्भवतां कहं ण णाणट्ठिया अट्ठा तर्हि
व्यवहारनयेन स्वकीयज्ञेयाकारपरिच्छित्तिसमर्पणद्वारेण ज्ञानस्थिता अर्थाः कथं न भवन्ति किंतु
भवन्त्येवेति । अत्रायमभिप्रायः --यत एव व्यवहारेण ज्ञेयपरिच्छित्त्याकारग्रहणद्वारेण ज्ञानं सर्वगतं
भण्यते, तस्मादेव ज्ञेयपरिच्छित्त्याकारसमर्पणद्वारेण पदार्था अपि व्यवहारेण ज्ञानगता भण्यन्त
इति ।।३१।। अथ ज्ञानिनः पदार्थैः सह यद्यपि व्यवहारेण ग्राह्यग्राहकसम्बन्धोऽस्ति तथापि
संश्लेषादिसम्बन्धो नास्ति, तेन कारणेन ज्ञेयपदार्थैः सह भिन्नत्वमेवेति प्रतिपादयति — गेण्हदि णेव ण
१. बिम्ब = जिसका दर्पणमें प्रतिबिंब पड़ा हो वह । (ज्ञानको दर्पणकी उपमा दी जाये तो, पदार्थोंके
ज्ञेयाकार बिम्ब समान हैं और ज्ञानमें होनेवाले ज्ञानकी अवस्थारूप ज्ञेयाकार प्रतिबिम्ब समान हैं) ।
२. पदार्थ साक्षात् स्वज्ञेयाकारोंके कारण हैं (अर्थात् पदार्थ अपने -अपने द्रव्य -गुण -पर्यायोंके साक्षात्
कारण हैं ) और परम्परासे ज्ञानकी अवस्थारूप ज्ञेयाकारोंके (ज्ञानाकारोंके) कारण हैं ।
३. प्रतिबिम्ब नैमित्तिक कार्य हैं और मयूरादि निमित्त -कारण हैं ।
५२प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
अन्वयार्थ : — [यदि ] यदि [ते अर्थाः ] वे पदार्थ [ज्ञाने न संति ] ज्ञानमें न हों तो
[ज्ञानं ] ज्ञान [सर्वगतं ] सर्वगत [न भवति ] नहीं हो सकता [वा ] और यदि [ज्ञानं सर्वगतं ]
ज्ञान सर्वगत है तो [अर्थाः ] पदार्थ [ज्ञानस्थिताः ] ज्ञानस्थित [कथं न ] कैसे नहीं हैं ?
(अर्थात् अवश्य हैं) ।।३१।।
टीका : — यदि समस्त स्व -ज्ञेयाकारोंके समर्पण द्वारा (ज्ञानमें) अवतरित होते हुए
समस्त पदार्थ ज्ञानमें प्रतिभासित न हों तो वह ज्ञान सर्वगत नहीं माना जाता । और यदि वह (ज्ञान)
सर्वगत माना जाये, तो फि र (पदार्थ) साक्षात् ज्ञानदर्पण -भूमिकामें अवतरित १बिम्बकी भाँति
अपने -अपने ज्ञेयाकारोंके कारण (होनेसे) और २परम्परासे प्रतिबिम्बके समान ज्ञेयाकारोंके कारण
होनेसे पदार्थ कैसे ज्ञानस्थित निश्चित् नहीं होते ? (अवश्य ही ज्ञानस्थित निश्चित होते हैं)
भावार्थ : — दर्पणमें मयूर, मन्दिर, सूर्य, वृक्ष इत्यादिके प्रतिबिम्ब पड़ते हैं । वहाँ
निश्चयसे तो प्रतिबिम्ब दर्पणकी ही अवस्थायें हैं, तथापि दर्पणमें प्रतिबिम्ब देखकर ३कार्यमें
कारणका उपचार करके व्यवहारसे कहा जाता है कि ‘मयूरादिक दर्पणमें हैं ।’ इसीप्रकार