Pravachansar (Hindi).

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अयं खल्वात्मा स्वभावत एव परद्रव्यग्रहणमोक्षणपरिणमनाभावात्स्वतत्त्वभूतकेवल-
ज्ञानस्वरूपेण विपरिणम्य निष्कम्पोन्मज्जज्ज्योतिर्जात्यमणिकल्पो भूत्वाऽवतिष्ठमानः समन्ततः
स्फु रितदर्शनज्ञानशक्तिः, समस्तमेव निःशेषतयात्मानमात्मनात्मनि संचेतयते
अथवा युगपदेव
सर्वार्थसार्थसाक्षात्करणेन ज्ञप्तिपरिवर्तनाभावात् संभावितग्रहणमोक्षणलक्षणक्रियाविरामः
प्रथममेव समस्तपरिच्छेद्याकारपरिणतत्वात् पुनः परमाकारान्तरमपरिणममानः समन्ततोऽपि
विश्वमशेषं पश्यति जानाति च एवमस्यात्यन्तविविक्तत्वमेव ।।३२।।
परद्रव्यं न जानाति पेच्छदि समंतदो सो जाणदि सव्वं णिरवसेसं तथापि व्यवहारनयेन पश्यति
समन्ततः सर्वद्रव्यक्षेत्रकालभावैर्जानाति च सर्वं निरवशेषम् अथवा द्वितीयव्याख्यानम्अभ्यन्तरे
कामक्रोधादि बहिर्विषये पञ्चेन्द्रियविषयादिकं बहिर्द्रव्यं न गृह्णाति, स्वकीयानन्तज्ञानादिचतुष्टयं च न
मुञ्चति यतस्ततः कारणादयं जीवः केवलज्ञानोत्पत्तिक्षण एव युगपत्सर्वं जानन्सन् परं विकल्पान्तरं न

परिणमति
तथाभूतः सन् किं करोति स्वतत्त्वभूतकेवलज्ञानज्योतिषा जात्यमणिकल्पो
निःकम्पचैतन्यप्रकाशो भूत्वा स्वात्मानं स्वात्मना स्वात्मनि जानात्यनुभवति तेनापि कारणेन परद्रव्यैः
सह भिन्नत्वमेवेत्यभिप्रायः ।।३२।। एवं ज्ञानं ज्ञेयरूपेण न परिणमतीत्यादिव्याख्यानरूपेण तृतीयस्थले
१. निःशेषरूपसे = कुछ भी किंचित् मात्र शेष न रहे इसप्रकार से
२. साक्षात्कार करना = प्रत्यक्ष जानना
३. ज्ञप्तिक्रियाका बदलते रहना अर्थात् ज्ञानमें एक ज्ञेयको ग्रहण करना और दूसरेको छोड़ना सो ग्रहण -त्याग
है; इसप्रकारका ग्रहण -त्याग वह क्रिया है, ऐसी क्रियाका केवलीभगवानके अभाव हुआ है
४. आकारान्तर = अन्य आकार
५४प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
टीका :यह आत्मा, स्वभावसे ही परद्रव्यके ग्रहण -त्यागका तथा परद्रव्यरूपसे
परिणमित होनेका (उसके) अभाव होनेसे, स्वतत्त्वभूत केवलज्ञानरूपसे परिणमित होकर
निष्कंप निकलनेवाली ज्योतिवाला उत्तम मणि जैसा होकर रहता हुआ, (१) जिसके सर्व ओरसे
(सर्व आत्मप्रदेशोंसे) दर्शनज्ञानशक्ति स्फु रित है ऐसा होता हुआ,
निःशेषरूपसे परिपूर्ण
आत्माको आत्मासे आत्मामें संचेतता -जानता -अनुभव करता है, अथवा (२) एकसाथ ही सर्व
पदार्थोंके समूहका
साक्षात्कार करनेके कारण ज्ञप्तिपरिवर्तनका अभाव होनेसे जिसके
ग्रहणत्यागरूप क्रिया विरामको प्राप्त हुई है ऐसा होता हुआ, पहलेसे ही समस्त ज्ञेयाकाररूप
परिणमित होनेसे फि र पररूपसेआकारान्तररूपसे नहीं परिणमित होता हुआ सर्व प्रकारसे
अशेष विश्वको, (मात्र) देखता -जानता है इसप्रकार (पूर्वोक्त दोनों प्रकारसे) उसका
(आत्माका पदार्थोंसे) अत्यन्त भिन्नत्व ही है
भावार्थ :केवलीभगवान सर्व आत्मप्रदेशोंसे अपनेको ही अनुभव करते रहते हैं;
इसप्रकार वे परद्रव्योंसे सर्वथा भिन्न हैं अथवा, केवली भगवानको सर्व पदार्थोंका युगपत्