Pravachansar (Hindi).

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यथा भगवान् युगपत्परिणतसमस्तचैतन्यविशेषशालिना केवलज्ञानेनानादिनिधन- निष्कारणासाधारणस्वसंचेत्यमानचैतन्यसामान्यमहिम्नश्चेतकस्वभावेनैकत्वात् केवलस्यात्मन आत्मनात्मनि संचेतनात् केवली, तथायं जनोऽपि क्रमपरिणममाणकतिपयचैतन्यविशेष- शालिना श्रुतज्ञानेनानादिनिधननिष्कारणासाधारणस्वसंचेत्यमानचैतन्यसामान्यमहिम्नश्चेतक- स्वभावेनैकत्वात् केवलस्यात्मन आत्मनात्मनि संचेतनात् श्रुतकेवली अलं विशेषा- कांक्षाक्षोभेण, स्वरूपनिश्चलैरेवावस्थीयते ।।३३।। विजानाति विशेषेण जानाति विषयसुखानन्दविलक्षणनिजशुद्धात्मभावनोत्थपरमानन्दैकलक्षणसुख- रसास्वादेनानुभवति कम् अप्पाणं निजात्मद्रव्यम् जाणगं ज्ञायकं केवलज्ञानस्वरूपम् केन कृत्वा सहावेण समस्तविभावरहितस्वस्वभावेन तं सुयकेवलिं तं महायोगीन्द्रं श्रुतकेवलिनं भणंति कथयन्ति के कर्तारः इसिणो ऋषयः किंविशिष्टाः लोगप्पदीवयरा लोकप्रदीपक रा लोकप्रकाशका इति अतो विस्तरः ---युगपत्परिणतसमस्तचैतन्यशालिना केवलज्ञानेन अनाद्यनन्तनिष्कारणान्य- द्रव्यासाधारणस्वसंवेद्यमानपरमचैतन्यसामान्यलक्षणस्य परद्रव्यरहितत्वेन केवलस्यात्मन आत्मनि स्वानुभवनाद्यथा भगवान् केवली भवति, तथायं गणधरदेवादिनिश्चयरत्नत्रयाराधकजनोऽपि १. अनादिनिधन = अनादि -अनन्त (चैतन्यसामान्य आदि तथा अन्त रहित है) २. निष्कारण = जिसका कोई कारण नहीं हैं ऐसा; स्वयंसिद्ध; सहज ३. असाधारण = जो अन्य किसी द्रव्यमें न हो, ऐसा ४. स्वसंवेद्यमान = स्वतः ही अनुभवमें आनेवाला ५. चेतक = चेतनेवाला; दर्शकज्ञायक ६. आत्मा निश्चयसे परद्रव्यके तथा रागद्वेषादिके संयोगों तथा गुणपर्यायके भेदोंसे रहित, मात्र चेतकस्वभावरूप

ही है, इसलिये वह परमार्थसे केवल (अकेला, शुद्ध, अखण्ड) है

५६प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

टीका :जैसे भगवान, युगपत् परिणमन करते हुए समस्त चैतन्यविशेषयुक्त

केवलज्ञानके द्वारा, अनादिनिधन -निष्कारण -असाधारण -स्वसंवेद्यमान चैतन्यसामान्य जिसकी महिमा है तथा जो चेतकस्वभावसे एकत्व होनेसे केवल (अकेला, शुद्ध, अखंड) है ऐसे आत्माको आत्मासे आत्मामें अनुभव करनेके कारण केवली हैं; उसीप्रकार हम भी, क्रमशः परिणमित होते हुए कितने ही चैतन्यविशेषोंसेयुक्त श्रुतज्ञानके द्वारा, अनादिनिधन- निष्कारण -असाधारण -स्वसंवेद्यमान -चैतन्यसामान्य जिसकी महिमा है तथा जो चेतक स्वभावके द्वारा एकत्व होने से केवल (अकेला) है ऐसे आत्माको आत्मासे आत्मामें अनुभव करनेके कारण श्रुतकेवली हैं (इसलिये) विशेष आकांक्षाके क्षोभसे बस हो; (हम तो) स्वरूपनिश्चल ही रहते हैं