Ratnakarand Shravakachar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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रत्नकरंडक श्रावकाचार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

भूतस्याभावे विद्यावृत्तस्यापि ते न सन्तीति ।।३२।। नाम पामे अने जो थोडा पण त्यागरूप प्रवर्ते तो सम्यक्चारित्र नाम पामे. जेम अंक सहित शून्य होय तो प्रमाणमां आवे (संख्यानी गणतरीमां आवे), एक विना शून्य शून्य ज रहे; तेम सम्यक्त्व विना ज्ञान अने चारित्र व्यर्थ ज छे. माटे पहेलां सम्यक्त्व अंगीकार करी, पछी बीजुं साधन करवुं.’’

वळी श्री गुणभद्राचार्ये ‘आत्मानुशासन’मां कह्युं छे के
‘‘(सम्यक्त्व विना) शम (कषायनी मंदता), बोध (ज्ञान), वृत्त (तेर प्रकारनुं दुर्धर

चारित्र) अने तप (घोर तप)ए पुरुषने पाषाणनी जेम भाररूप छे, परंतु ते ज (शमादि) सम्यक्त्व सहित होय तो महामणि (चिन्तामणि)नी जेम पूज्यताने प्राप्त थाय छे.’’

‘‘सम्यक्त्वसहित अल्प शमभाव, अल्प ज्ञान, अल्प चारित्र अने अल्प तपभावथी जीव कल्पवासी इन्द्रादिकोमां ऊपजी जन्ममरण रहित परमात्मपदने पामे छे (प्राप्त करे छे). अने सम्यक्त्व विना बहु शमभाव, अगियार अंग सुधीनुं बहु ज्ञान, बहु उज्ज्वळ चारित्र अने घोर तपक्रियाजो कषायनी मंदता होय तोभवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी तथा अल्प ॠद्धिधारी कल्पवासी देवमां ऊपजी फरीथी चतुर्गतिरूप संसारमां परिभ्रमण करे छे. तेथी सम्यक्त्व सहित ज शम, ज्ञान, चारित्र अने तप जीवने आत्मकल्याणरूप छे.’’

दंसणमूलो धम्मोसम्यग्दर्शन ए धर्मनुं मूळ छे. (दर्शनपाहुड गाथा२) अने चारित्रं खलु धम्मोसम्यक्चारित्र ए खरेखर धर्म छे. (प्रवचनसार गाथा७) सम्यग्दर्शनरूपी मूळ विना सम्यक्चारित्ररूपी वृक्ष फालीफळी शके ज नहि, कारण के मूलं नास्ति कुतः शाखामूळ ज न होय तो थड, शाखा वगेरे क्यांथी होय? न ज होय.

‘‘जे दर्शनथी भ्रष्ट छे ते भ्रष्ट छे, दर्शनथी भ्रष्ट थयेलाने निर्वाणनी प्राप्ति थती नथी. जे चारित्रथी भ्रष्ट छे ते सिद्धिने प्राप्त करे छे, परंतु जे दर्शनथी भ्रष्ट थयेलो छे १. श्री पुरुषार्थसिद्धिउपाय गुजराती अनुवाद श्लोक २१नो भावार्थ.

जुओ, दर्शनपाहुड गाथा ४५.

२. शमबोधवृत्ततपस पाषाणस्यैव गौरवं पुंसः

पूज्यं महामणेरिव तदेव सम्यक्त्व संयुक्तम् ।।१५।। (आत्मानुशासन श्लोक १५ अने भावार्थ)