कहानजैनशास्त्रमाळा ]
यतश्च सम्यग्दर्शनसम्पन्नो गृहस्थोऽपि तदसम्पन्नान्मुनेरुत्कृष्टतरस्ततोऽपि सम्यग्दर्शनमेवोत्कृष्टमित्याह — ते सिद्धि प्राप्त करी शकतो नथी.’’१
जो वृक्षनां मूळनो नाश करवामां आवे तो वृक्षनां थड, डाळां, पांदडां वगेरे थोडा समय पछी सूकाईने नाश पामे छे, तेम सम्यग्दर्शनना अभावमां संयम पाळवा छतां ते निष्फळ जाय छे.२ पण मूळने सुरक्षित राखी थड, डाळां वगेरे कापी नाखवामां आवे तो ते वृक्ष फरीथी वृद्धि पामी पल्लवित आदि थाय छे, तेम जो सम्यग्दर्शनरूपी मूळ सुरक्षित होय तो चारित्रथी भ्रष्ट थयेलो पुरुष फरीथी चारित्र ग्रहण करी सिद्धि प्राप्त करे छे.
सम्यग्दर्शन उत्कृष्ट अने कर्णधार होवाथी ते प्रथम धारण करवुं जोईए. ते चोथा गुणस्थाने प्राप्त थाय छे अने श्रावकनुं चारित्र पांचमा गुणस्थाने धारण करी शकाय छे, तेथी पांचमा गुणस्थान योग्य चारित्र – क्रिया पहेली अने सम्यग्दर्शन भविष्यमां प्राप्त थाय तेवी समजण अने मान्यता जैनतत्त्वथी विरुद्ध छे.
‘‘......कोई जीव एवुं माने छे के – जाणवामां शुं छे, कंईक करीशुं तो फळ प्राप्त थशे. एवुं विचारीने तेओ व्रत – तपादि क्रियाना ज उद्यमी रहे छे, पण तत्त्वज्ञाननो उपाय करता नथी. हवे तत्त्वज्ञान विना महाव्रतादिकनुं आचरण पण मिथ्याचारित्र नाम ज पामे छे तथा तत्त्वज्ञान थतां कांई पण व्रतादिक न होय तोपण ते असंयत सम्यग्द्रष्टि नाम पामे छे, माटे पहेलां तत्त्वज्ञाननो उपाय करवो, पछी कषाय घटाडवा अर्थे बाह्य साधन करवां.’’
श्री योगेन्द्रदेव कृत श्रावकाचारमां कह्युं छे के —
अर्थः — हे जीव! आ सम्यग्दर्शन भूमि विना व्रतरूप वृक्ष न थाय, माटे सम्यग्दर्शन प्रथम प्राप्त करवुं जोईए.३ ३२.
कारण के सम्यग्दर्शनयुक्त गृहस्थ पण तेनाथी (सम्यग्दर्शनथी) असंपन्नरहित मुनिथी उत्कृष्ट छे, ते कारणथी पण सम्यग्दर्शन ज उत्कृष्ट छे एम कहे छे — १. दंसण भट्टा भट्टा दंसण भट्टस्स णत्थि णिव्वाणं ।
२. जुओ चारित्रपाहुड गाथा १०. ३. मोक्षमार्ग प्रकाशक गुजराती आवृत्ति, पृष्ठ २४२, अध्याय ७.