कहानजैनशास्त्रमाळा ]
भावार्थ : — त्रण काळ अने त्रण लोकमां सम्यक्त्व समान कोई पदार्थ संसारी जीवोने कल्याणकारी नथी; अर्थात् इन्द्र, अहमिन्द्र, भुवनेन्द्र, चक्री, नारायण, बलभद्र अने तीर्थंकरादिक समस्त चेतन पदार्थो अने मणि – मंत्र, औषधादिक समस्त अचेतन पदार्थो सम्यक्त्व समान उपकारक नथी, कारण के तेना सद्भावमां अव्रती गृहस्थ पण द्रव्यलिंगी मुनि करतां उत्तम गणाय छे. वळी अव्रती सम्यग्द्रष्टि देव – मनुष्यना थोडाक भव करी — अर्थात् स्वर्गादिकनां सुख भोगवी, नियमथी मोक्ष पामे छे; अने मिथ्यात्व समान कोई पदार्थ जीवने अकल्याणकारी नथी, कारण के तेना सद्भावमां महाव्रतधारी द्रव्यलिंगी मुनि पण अव्रती सम्यग्द्रष्टि गृहस्थथी हीन मनाय छे.
वळी दोलतरामजी कृत ‘छढाळा’मां कह्युं छे के —
सकल धरमको मूल यही इस बिन करनी दुःखकारी ।। (छहढाला ३/१६)
त्रण लोक अने त्रण काळमां सम्यक्त्व समान अन्य कोई सुखकारी नथी, ते सर्व धर्मोनुं मूळ छे, तेना विना सर्व ज्ञान, व्रत, क्रिया – बधुं वृथा छे अने दुःखनुं कारण छे.
तेथी मोक्षमार्गमां सम्यक्त्वनी ज उत्तमता छे. ३४. आथी पण सम्यग्दर्शन ज ज्ञान अने चारित्रथी उत्कृष्ट छे एम कहे छे —
अन्वयार्थ : — [सम्यग्दर्शनशुद्धाः ] सम्यग्दर्शनथी शुद्ध (सम्यग्द्रष्टि) जीवो [अव्रतिकाः ] व्रत रहित होवा छतां पण [नारकतिर्यङ्नपुंसकस्त्रीत्वानि ] नारकपणाने, तिर्यंचपणाने, नपुंसकपणाने अने स्त्रीपणाने तथा [दुष्कुलविकृताल्पायुर्दरिद्रताम् ] नीच – कुलीनताने, शरीरनी बेडोळताने, अल्पायुताने अने दरिद्रताने [न व्रजन्ति ] प्राप्त