Ratnakarand Shravakachar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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रत्नकरंडक श्रावकाचार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

व्यवहार सम्यग्दर्शन ते शुभाशुभ होवाथी बंधनुं कारण छे अने निश्चय सम्यग्दर्शन शुद्ध पर्याय होवाथी संवरनिर्जरानुं कारण छे, तेथी उपरोक्त एकतालीस प्रकृतिओनो बंध थतो नथी, तेनो संवर थाय छे.

वळी अव्रती सम्यग्द्रष्टि नरकादिने प्राप्त थतो नथी, तेनुं कारण ए छे के मिथ्याद्रष्टिने जेवा अनन्तानुबंधी तीव्र कषायो होय छे, तेवा तीव्र कषायो तेने होता नथी. तेने आर्त्त अने रौद्र परिणाम थाय छे, पण मिथ्याद्रष्टिनी जेम तेओ तेने तिर्यंच के नरकगतिनुं कारण थता नथी, कारण के ‘निज शुद्धात्मा ज ग्रहण करवा योग्य छे’एवी भावना तेने निरंतर वर्ते छे.

बृहद् द्रव्यसंग्रह गाथा ४८नी संस्कृत टीकामां कह्युं छे के

‘‘........आर्त्तध्यान तारतम्यताथी मिथ्याद्रष्टि गुणस्थानथी प्रमत्त गुणस्थान सुधीना जीवोने होय छे. आ आर्त्तध्यान, जोके मिथ्याद्रष्टि जीवोने, तिर्यंच गतिना बंधनुं कारण थाय छे, तथापि जे जीवोने सम्यक्त्व प्राप्तिनी पहेलां तिर्यंच आयुनो बंध थई चूक्यो होय ते सिवाय अन्य सम्यग्द्रष्टिने ते आर्त्तध्यान तिर्यंचगतिनुं कारण थतुं नथी.

शंकाःसम्यग्द्रष्टिने आर्तध्यान तिर्यंचगतिनुं कारण केम थतुं नथी?

उत्तरःकारण के ‘निज शुद्धात्मा ज ग्रहण करवा योग्य छे’एवी विशिष्ट भावनाना बळथी सम्यग्द्रष्टि जीवोने तिर्यंच गतिना कारणभूत संक्लेश परिणामोनो अभाव होय छे.

रौद्रध्यान मिथ्याद्रष्टिथी पांचमा गुणस्थान सुधीना जीवोने होय छे. ते मिथ्याद्रष्टि जीवोने नरक गतिनुं कारण छे, छतां पण जे जीवे सम्यक्त्वनी पहेलां नरकायुनो बंध करी लीधो होय, तेना सिवाय अन्य सम्यग्द्रष्टिओने ए रौद्रध्यान नरक गतिनुं कारण थतुं नथी.

प्रश्नःसम्यग्द्रष्टिने रौद्रध्यान नरकगतिनुं कारण केम थतुं नथी?

उत्तरःकारण के सम्यग्द्रष्टिओने ‘निज शुद्धात्म तत्त्व ज उपादेय छे’एवा १. तदविरतदेशविरतप्रमत्तसंयतानाम् । (श्री प्रवचनसार)

जुओतत्त्वार्थसूत्र अध्याय ९, सूत्र ३४.

२.......रौद्रमविरत देशविरतयोः । (तत्त्वार्थसूत्र अध्याय ९, सूत्र ३५)