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धनधान्यद्रव्यादिसम्पत्तिः, एतैः सनाथा सहिताः । तथा ‘माहाकुला’ महच्च तत् कुलं च माहाकुलं तत्र भवाः । ‘महार्था’ महान्तोऽर्था धर्मार्थकाममोक्षलक्षणा येषाम् ।।३६।। ‘विभवः’ धन, धान्य, द्रव्यादि संपत्ति – ए सर्वथी युक्त छे जेओ एवा तथा ‘माहाकुलाः’ जेओ उच्च कुळमां उत्पन्न थाय छे एवा अने ‘महार्थाः’ जेमने धर्म, अर्थ, काम अने मोक्षरूप महान अर्थो साध्य छे एवा (अर्थात् जेओ धर्म, अर्थ, काम अने मोक्षना साधक छे एवा) — सम्यग्द्रष्टि जीवो मनुष्यना तिलक थाय छे.
भावार्थ : — शुद्ध सम्यग्द्रष्टि जीवो (मरीने) उत्साह, प्रताप, कांति, बळ, विद्या, कीर्ति, उन्नति, विजय अने संपत्ति सहित उच्च कुळवान अने धर्म – अर्थादि पुरुषार्थोना साधक मनुष्योना शिरोमणि – राजा थाय छे.
सम्यग्द्रष्टिने शुद्धतानी साथे सहचररूपे शुभभाव पण होय छे. ते शुभभावने अहीं व्यवहारधर्म समजवो. तेना फळरूपे तेने लक्ष्मी वगेरेनो संयोग थाय छे, परंतु तेने पुण्यभावनुं के तेना फळरूप संयोगी पदार्थनुं स्वामित्व होतुं नथी, श्रद्धामां – अभिप्रायमां तेनो स्वीकार नथी.
चारित्रनी नबळाईना कारणे तेनुं संयोगी पदार्थ तरफ लक्ष जाय छे, परंतु ते संयोगी भावनी साथे पण ते एकता करतो नथी, तेथी मोक्षनो पुरुषार्थ चालु राखी, ते बधानो अभाव करी मोक्ष प्राप्त करे छे. तेनुं नाम धर्म – अर्थ – काम अने मोक्षनो पुरुषार्थ छे एम समजवुं. आ द्रष्टिए ज सम्यग्द्रष्टि जीवोने ‘माहार्थाः’ अर्थात् धर्म – अर्थ – काम अने मोक्षना साधक कह्या छे.
जेम खेडूत अनाज माटे खेती करे छे, परंतु तेने अनाज साथे अनायासे खडनी (घासनी) पण प्राप्ति थाय छे, तेम सम्यग्द्रष्टिने मोक्ष माटे पुरुषार्थ वच्चे सहजपणे – अनायासे चक्रवर्तीपदादि पुण्यनी सामग्री मळ्या वगर रहेती नथी. (जुओ, परमात्मप्रकाश गाथा ६१, संस्कृत टीका, अध्याय २ अने बृहद् द्रव्यसंग्रह (हिन्दी) गाथा ३८, पृष्ठ १५१; (गुजराती) पृष्ठ १८१.)
आ प्रकारनी मोक्षमार्गनी स्थिति चोथा गुणस्थानथी छठ्ठा गुणस्थान सुधी होय छे, आ दर्शाववा माटे टीकाकारे सम्यग्द्रष्टि जीवोने ‘माहार्थाः’ कह्या छे.
वळी आ गाथाथी ए फलित थाय छे के – सम्यग्द्रष्टि मोक्षमार्गी छे अने ते