Ratnakarand Shravakachar-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 37 shuddh sanyagdrashtini indra padni prApti.

< Previous Page   Next Page >


Page 99 of 315
PDF/HTML Page 123 of 339

 

कहानजैनशास्त्रमाळा ]

रत्नकरंडक श्रावकाचार
[ १०९
तथा इन्द्रपदमपि सम्यग्दर्शनशुद्धा एव प्राप्नुवन्तीत्याह
अष्टगुणपुष्टितुष्टा दृष्टि विशिष्टाः प्रकृष्टशोभाजुष्टाः
अमराप्सरसां परिषदि चिरं रमन्ते जिनेन्द्रभक्ताः स्वर्गे ।।३७।।

ये ‘दृष्टिविशिष्टाः’ सम्यग्दर्शनोपेता ‘जिनेन्द्रभक्ताः’ प्राणिनस्ते ‘स्वर्गे’ ‘अमराप्सरसां परिषदि’देवदेवीनां सभायां ‘चिरं’ बहुतरं कालं ‘रमन्ते’ क्रीडन्ति मोक्षमार्गनी शरूआत चोथा गुणस्थानथी थाय छे. आना समर्थनमां पं. श्री दौलतरामजीए पण ‘छढाळा’ना ३/५मां कह्युं छे के

मध्यम अंतरआतम हैं जे, देशव्रती अनगारी,
जघन कहे अविरत समद्रष्टि, तीनों शिवमगचारी. ३/५.

भावार्थ :देशव्रती अर्थात् पंचम गुणस्थानवर्ती श्रावक अने अनगारी अर्थात् छठ्ठा गुणस्थानवर्ती मुनिबंने मध्यम अंतरात्मा छे अने चोथा गुणस्थानवर्ती अविरत सम्यग्द्रष्टि जघन्य अंतरात्मा छे. आ त्रणे अंतरात्माओ मोक्षमार्गी छे. जो मोक्षमार्ग चोथा गुणस्थानथी शरू थतो न होय तो अविरत सम्यग्द्रष्टिने पंडितजी मोक्षमार्गी केम कहे? ३६.

तथा इन्द्रपदने पण सम्यग्दर्शनथी शुद्ध (थयेला) जीवो ज प्राप्त करे छे एम कहे छे

शुद्ध सम्यग्द्रष्टिनी £न्द्रपदनी प्राप्ति
श्लोक ३७

अन्वयार्थ :[दृष्टिविशिष्टाः ] शुद्ध सम्यग्द्रष्टि सहित [जिनेन्द्रभक्ताः ] जिनेन्द्रना भक्त जीवो [स्वर्गे ] स्वर्गमां [अष्टगुणपुष्टितुष्टाः ] आठ ॠद्धिओनी पूर्णताथी संतुष्ट अने [प्रकृष्टशोभाजुष्टाः ] विशेष शोभा (सुंदरता)थी युक्त थईने [अमराप्सरसां ] देवो अने अप्सराओनी [परिषदि ] सभामां [चिरम् ] लांबाकाळ सुधी [रमन्ते ] रमे छे.

टीका :जेओ दृष्टिविशिष्टाः’ सम्यग्दर्शन सहित जिनेन्द्रभक्ताः’ जिनेन्द्रना भक्तो छे तेओ अमराप्सरसाम् परिषदि’ देवदेवीओनी सभामां चिरं’ लांबा काळ सुधी १. दृष्टिविशिष्टाः, जिनेन्द्रभक्ताः, स्वर्गे अने अमराप्सरसांए शब्दोनी संस्कृत टीका रही गई

लागे छे.