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कथंभूताः ? अष्टगुणपुष्टितुष्टाः’ अष्टगुणा अणिमा, महिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्यं, ईशित्वं, वशित्वं, कामरूपित्वमितल्लक्षणास्ते च पुष्टिः स्वशरीरावयवानां सर्वदोषचितत्वं तेषां वा पुष्टिः परिपूर्णत्वं तया तुष्टाः सर्वदा प्रमुदिताः । तथा ‘प्रकृष्टशोभाजुष्टा’ इतरदेवेभ्यः प्रकृष्टा उत्तमा शोभा तया जुष्टा सेविताः इन्द्राः सन्त इत्यर्थः ।।३७।।
‘रमन्ते’ रमे छे – क्रीडा करे छे. केवा थईने? ‘अष्टगुणपुष्टितुष्टाः’ आठ गुणो – अर्थात् अणिमा, महिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, इशित्व, वशित्व अने कामरुपित्व — ए रूप आठ ॠद्धिओ – तेमनी पूर्णताथी संतुष्ट अर्थात् सर्वदा प्रमुदित (आनंदित) अथवा ते आठ ॠद्धिओ रूप गुणोथी तेमना शरीरना अवयवोनी सर्वदा पुष्टि – वृद्धि थाय छे, तेनाथी सदा संतुष्ट तथा ‘प्रकृष्टशोभाजुष्टाः’ बीजा देवोना करतां उत्कृष्ट – उत्तम शोभायुक्त थईने अर्थात् अन्य देवोथी सेवित इन्द्रो थईने.
भावार्थ : — सम्यग्द्रष्टि जीव मृत्यु पछी स्वर्गमां इन्द्र पण थाय छे. त्यां अणिमादि आठ ॠद्धिओनी पूर्णताथी आनंदित थई विशेष सुंदर वैक्रियिक शरीर प्राप्त करी, देव अने अप्सराओनी सभामां लांबा समय सुधी रमे छे अने अन्य देवो तेनी सेवा करे छे.
आ गाथा सूचवे छे के सम्यक्त्वनी भूमिकामां हेयबुद्धिए करेला शुभ भावोना फळरूपे उपरोक्त दर्शावेली अणिमादि आठ ॠद्धिओनी प्राप्ति थाय छे. सर्वे सम्यग्द्रष्टिओ जिनेन्द्रना भक्तो होय छे. ३७.
तथा चक्रवर्ती पदने पण ते (शुद्ध सम्यग्द्रष्टिओ) ज प्राप्त करे छे – एम कहे छे —
अन्वयार्थ : — [स्पष्टदृशः ] जेओ निर्मळ सम्यग्द्रष्टि जीवो छे तेओ ज [नवनिधिसप्तद्वयरत्नाधीशाः ] नवनिधि अने चौद रत्नोना स्वामी थया थका तथा