कहानजैनशास्त्रमाळा ]
निश्चितः परिसमाप्ति गतोऽर्थो धर्मादिलक्षणो येषां । तथा ‘लोकशरण्याः’ अनेकविध- दुःखदायिभिः कर्मारातिभिरुपद्रुतानां लोकानां शरणे साधवः ।।३९।।
वळी तेओ केवा छे? ‘सुनिश्चितार्थाः’ जेमने धर्मादिरूप अर्थ सारी रीते निश्चित थयो छे अर्थात् परिसमाप्तिए (पूर्णताए) पाम्यो छे, (अर्थात् जेमने धर्मादि पदार्थोनो सम्यक् प्रकारे संपूर्णपणे निश्चय थयो छे – श्रद्धान थयुं छे) तेवा तथा ‘लोकशरण्याः’ अनेक प्रकारना दुःखदायी कर्म – शत्रुओ द्वारा उपद्रव पामेला लोकोना जेओ शरणभूत छे एवा.
भावार्थ : — सम्यग्द्रष्टि जीव मृत्यु बाद सम्यक्त्वना माहात्म्यथी देवेन्द्र, धरणेन्द्र, चक्रवर्ती तथा गणधरो द्वारा पूजनीय थाय छे तथा त्रण लोकना शरणभूत, धर्मचक्रना धारक तीर्थंकर पण थाय छे.
तीर्थंकरदेव त्रण लोकना अधिपतिओ द्वारा पूजनीय छे – ए बतावे छे के त्रण लोकमां तीर्थंकरदेवनुं पुण्य – फळ सौथी उत्कृष्ट छे. वळी ज्ञानीओ अने त्यागीओमां गणधर सौथी मोटा छे, तेओ पण श्रोताओनी कोटिमां बेसी धर्म श्रवण करे छे, ते बतावे छे के धर्ममां पण तीर्थंकरदेव सौथी उत्तम छे. विहारकाळे तेमनी महत्तासूचक एक धर्मचक्र तीर्थंकर भगवाननी आगळ चाले छे.
आ प्रमाणे त्रण लोकना राजा – महाराजाओ, इन्द्रो, ज्ञानीओ, त्यागीओ, धर्मात्माओ – सर्वे जेमने पूजे छे, जेमनुं शरण ले छे – एवा सामर्थ्यशाळी अलौकिक पुरुष – तीर्थंकरदेव – सम्यग्दर्शनना ज माहात्म्यथी थाय छे. ३९.
तथा मोक्षनी प्राप्ति पण शुद्ध सम्यग्द्रष्टिने ज थाय छे ते कहे छे —
अन्वयार्थ : — [दर्शनशरणाः ] सम्यग्दर्शन जेमनुं शरण छे एवा जीवो [अजरम् ] घडपणरहित, [अरुजम् ] रोगरहित, [अक्षयम् ] क्षयरहित, [अव्याबाधम् ]