कहानजैनशास्त्रमाळा ]
तेमने भावश्रुतज्ञान होय छे अने ते ज्ञान सकळ पदार्थोने प्रकाशवाने समर्थ होवाथी तेने केवळज्ञानवत् कह्युं छे.
आवुं ज्ञान भूतार्थ – त्रिकाळी ध्रुवस्वात्माना आश्रय विना कोईने प्रगट थई शके नहि.
ज्यां सम्यग्ज्ञान होय त्यां आत्मिक सुख अभिन्न होय छे, केम के ज्ञान अने सुखनुं अभिन्नपणुं छे. (जुओ श्री प्रवचनसार गाथा ५३नी श्री अमृतचंद्राचार्यकृत भूमिका).
‘‘.......प्रयोजनभूत जीवादि तत्त्वोमां संशय, विपर्यय अने अनध्यवसायरूप जे जाणवुं थाय छे तेनुं नाम मिथ्याज्ञान छे, पण अप्रयोजनभूत पदार्थोने यथार्थ जाणे अथवा अयथार्थ जाणे तेनी अपेक्षाए कांई मिथ्याज्ञान – सम्यग्ज्ञान नथी; जेम मिथ्याद्रष्टि दोरडीने दोरडी जाणे तेथी (तेनुं ज्ञान) कांई सम्यग्ज्ञान नाम पामे नहि तथा सम्यग्द्रष्टि दोरडीने साप जाणे तेथी (तेनुं ज्ञान) कांई ते मिथ्याज्ञान नाम पामे नहि.
‘‘........अहीं तो संसार – मोक्षना कारणभूत सत्य – असत्य जाणवानो निर्धार करवो छे, एटले दोरडी – सर्पादिकनुं यथार्थ वा अन्यथा ज्ञान कांई संसार – मोक्षनुं कारण नथी, माटे एनी अपेक्षाए अहीं मिथ्याज्ञान – सम्यग्ज्ञान कह्युं नथी; पण प्रयोजनभूत जीवादि तत्त्वोने जाणवानी अपेक्षाए ज मिथ्याज्ञान – सम्यग्ज्ञान कह्युं छे अने ए ज अभिप्रायथी सिद्धान्तमां मिथ्याद्रष्टिना सर्व जाणवाने मिथ्याज्ञान ज कह्युं तथा सम्यग्द्रष्टिना सर्व जाणवाने सम्यग्ज्ञान कह्युं.
‘‘कारण के मिथ्याद्रष्टि जाणे छे त्यां तेने सत्ता – असत्तानो विशेष (भेद) नथी, तेथी ते कारण विपरीतता, स्वरूप विपरीतता वा भेदाभेद विपरीतता उपजावे छे.......ए प्रमाणे मिथ्याद्रष्टिना जाणवामां विपरीतता होय छे.
‘‘जेम दारूनो केफी मनुष्य माताने पोतानी स्त्री माने तथा स्त्रीने माता माने, तेम मिथ्याद्रष्टिमां अन्यथा जाणवुं होय छे. वळी जेम कोई काळमां ए केफी मनुष्य माताने माता वा स्त्रीने स्त्री पण जाणे, तोपण तेने निश्चयरूप निर्धार वडे श्रद्धानपूर्वक जाणवुं न होवाथी तेने यथार्थ ज्ञान कहेता नथी. तेम मिथ्याद्रष्टि कोई काळमां कोई पदार्थने सत्य पण जाणे, तोपण तेना निश्चयरूप निर्धारथी श्रद्धान सहित जाणतो नथी, तेथी तेने सम्यग्ज्ञान कहेता नथी; अथवा सत्य जाणे छतां ए वडे पोतानुं अयथार्थ ज प्रयोजन