Ratnakarand Shravakachar-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 43 prathmAnuyoganu swarup.

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रत्नकरंडक श्रावकाचार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
तस्य विषयभेदाद्भेदान् प्ररूपयन्नाह
प्रथमानुयोगमर्थाख्यानं चरितं पुराणमपि पुण्यम्
बोधिसमाधिनिधानं बोधति बोधः समीचीनः ।।४३।।

साधे छे, तेथी तेने सम्यग्ज्ञान कहेवातुं नथी. ए प्रमाणे मिथ्याद्रष्टिना ज्ञानने मिथ्याज्ञान कहीए छीए.

प्रश्नःए मिथ्याज्ञाननुं कारण शुं छे?
उत्तरःमोहना उदयथी जे मिथ्यात्वभाव थाय छेसम्यग्भाव थतो नथी ए ज

मिथ्याज्ञाननुं कारण छे. जेम विषना संयोगथी भोजनने पण विषरूप कहेवामां आवे छे, तेम मिथ्यात्वना संबंधथी ज्ञान पण मिथ्याज्ञान नाम पामे छे.

ए ज प्रमाणे जीवने प्रयोजनभूत जीवादि तत्त्व तथा अप्रयोजनभूत अन्य पदार्थोने यथार्थ जाणवानी शक्ति होय, पण त्यां जेने मिथ्यात्वनो उदय होय ते तो अप्रयोजनभूत होय तेने ज वेदे छेजाणे छे, पण प्रयोजनभूतने जाणतो नथी. जो ते प्रयोजनभूतने जाणे तो सम्यग्ज्ञान बनी जाय, पण मिथ्यात्वनो उदय होवाथी तेम बनी शकतुं नथी. माटे त्यां प्रयोजनभूतअप्रयोजनभूत पदार्थो जाणवामां ज्ञानावरणनुं निमित्त नथी, परंतु मिथ्यात्वनो उदयअनुदय ज कारणभूत छे.’’ ४२.

तेना (सम्यग्ज्ञानना) विषयभेदथी प्रथमानुयोगरूप भेदनुं प्ररूपण करतां कहे छे

प्रथमानुयोगनुं स्वरुप
श्लोक ४३

अन्वयार्थ :[समीचीनः बोधः ] सम्यग्ज्ञान छे ते [अर्थाख्यानम् ] जेमां परमार्थरूप विषयनुं व्याख्यान छे एवा, [चरितं ] जेमां कोई एक महापुरुषना चरित्रनुं व्याख्यान आवे छे एवा, [पुराणम् अपि ] जेमां त्रेसठ शलाकापुरुषोनी कथा आवे छे एवा, [पुण्यम् ] जेने सांभळवाथी पुण्य ऊपजे छे एवा अने [बोधिसमाधिनिधानम् ] जे बोधि अने समाधि ए बंने विषयोनुं निधान छे एवा (अर्थात् तेने सांभळवाथी बोधि अने समाधि प्राप्त थाय छे एवा) [प्रथमानुयोगम् ] प्रथमानुयोगने [बोधति ] जाणे छे. १. जुओ, मोक्षमार्ग प्रकाशक, गुजराती आवृत्ति, अध्याय ४, पृष्ठ ८८ थी ९०.