Ratnakarand Shravakachar-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 1 manglAcharaN.

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२ ]

रत्नकरंडक श्रावकाचार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

श्रीसमन्तभद्रस्वामी रत्नानां रक्षणोपायभूतरत्नकरण्डकप्रख्यं सम्यग्दर्शनादिरत्नानां पालनोपायभूतं रत्नकरण्डकाख्यं शास्त्रं कर्तुकामो निर्विघ्नतः शास्त्रपरिसमाप्त्यादिकं फलमभिलषन्निष्टदेवताविशेषं नमस्कुर्वन्नाह

नमः श्रीवर्द्धमानाय निर्धूतकलिलात्मने
सालोकानां त्रिलोकानां यद्विद्या दर्पणायते ।।।।

‘नमो’ नमस्कारोऽस्तु कस्मै ? ‘श्रीवर्धमानाय’ अन्तिमतीर्थंकराय तीर्थंकरसमुदायाय अंदरथी बधी तरफथी भद्ररूप छे एवा जिनेश्वरदेवने) [प्रणम्य ] नमस्कार करीने [रत्नकरण्डके ]

[निबंधनम् ]
रत्नकरंडक श्रावकाचारनी उपर
निबंधन (टीका, विवरण)

[करोमि ] हुं (श्री प्रभाचंद्राचार्य) करुं छुं.

रत्नोना रक्षणना उपायभूत ‘रत्नकरंडक’ रूप सम्यग्दर्शनादि रत्नोना पालनना उपायभूत ‘रत्नकरंडक’ नामना शास्त्रनी रचना करवाना इच्छुक श्री समन्तभद्रस्वामी निर्विघ्ने शास्त्रनी परिसमाप्ति आदिरूप फळनी अभिलाषा राखीने इष्ट देवता विशेषने नमस्कार करीने कहे छेः

(मंगलाचरण)
श्लोक १
अन्वयार्थ :*[निर्धूतकलिलात्मने ] जेमना आत्माए ज्ञानावरणादि कर्मरूप
पापनो नाश कर्यो छे अथवा जेमना आत्माए (हितोपदेश आपीने) अन्य जीवोना
ज्ञानावरणादि कर्मरूप पापनो नाश कर्यो छे. एवा अने
[यद्विद्या ] जेमनी विद्या (अर्थात्

केवळज्ञान) [सालोकानाम् ] अलोकाकाश सहित [त्रिलोकानाम् ] त्रणे लोकना विषयमां [दर्पणायते ] दर्पणनी समान वर्ते छे, (अर्थात् दर्पणनी जेम तेमना केवळज्ञानमां अलोक सहित त्रणे लोक - त्रणे लोकना समस्त पदार्थो प्रतिबिंबित थाय छे, [तस्मै ] एवा [श्रीवर्धमानाय ] श्री वर्धमान स्वामीने [नमः ] नमस्कार हो.

टीका :नमः’ नमस्कार हो. कोने? ‘श्रीवर्धमानाय’ अंतिम तीर्थंकर श्री * नोंधआ ग्रंथमां बधे [ ] आवुं चिह्न मूळ श्लोकना पदने सूचवे छे, अने ( ) आवुं चिह्न

आगळपाछळनी संधि माटे समजवुं.