८ ]
स्वर्गापवर्गसुखसाधकत्वाद्धर्मरूपाणि सिद्ध्यन्तीति ।।३।। (कारणभूत) छे. तेथी सम्यग्दर्शनादि स्वर्ग - मोक्षना साधक होवाथी ते धर्मरूप सिद्ध थाय छे.
भावार्थ : — जिनेन्द्रदेवे सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्रने (त्रणेनी एकताने) धर्म अर्थात् १मोक्षमार्ग कह्यो छे अने तेनाथी विपरीत मिथ्यादर्शन - ज्ञान - चारित्रने संसारमार्ग कह्यो छे. सम्यग्दर्शनादिरूप धर्म - रत्नत्रयरूप धर्म सुखनुं कारण छे अने मिथ्यादर्शनादिरूप अधर्म संसारपरिभ्रमणरूप दुःखनुं कारण छे.
विपरीत (अन्यथा) अभिनिवेश (अभिप्राय) रहित जीवादि तत्त्वोनुं श्रद्धान ते सम्यग्दर्शन छे. संशय, विपर्यय अने अनध्यवसाय रहित पोताना आत्मानुं तथा परनुं यथार्थ ज्ञान ते सम्यग्ज्ञान छे अने सम्यग्दर्शन - ज्ञानपूर्वक आत्मामां स्थिरता ते सम्यक्चारित्र छे.
‘‘......श्री प्रवचनसारमां पण ए त्रणेनी एकाग्रता थतां ज मोक्षमार्ग कह्यो छे, माटे एम जाणवुं के — तत्त्वश्रद्धान-ज्ञान विना तो रागादि घटाडवा छतां, पण मोक्षमार्ग नथी तथा रागादि घटाड्या विना तत्त्वश्रद्धान - ज्ञानथी पण मोक्षमार्ग नथी, पण ए त्रणे मळतां ज साक्षात् मोक्षमार्ग थाय छे........’’२
‘‘अज्ञान दशामां जीवो दुःख भोगवी रह्या छे तेनुं कारण तेमने पोताना स्वरूपनी भ्रमणा छे. आ भ्रमणाने ‘मिथ्यादर्शन’ अथवा खोटी मान्यता कहे छे. ज्यां पोताना स्वरूपनी खोटी मान्यता होय त्यां पोताना स्वरूपनुं ज्ञान पण खोटुं होय; ते खोटा ज्ञानने ‘मिथ्याज्ञान’ कहे छे. ज्यां पोताना स्वरूपनी खोटी मान्यता अने खोटुं ज्ञान होय त्यां चारित्र पण खोटुं ज होय; आ खोटा चारित्रने ‘मिथ्याचारित्र’ कहे छे. अनादिथी जीवोने ‘मिथ्यादर्शन
रह्या छे.३ १. सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः ।।१।। मोक्षशास्त्र. २. गुजराती मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ ३१९. ३. गुजराती मोक्षशास्त्र पृष्ठ ९.