कहानजैनशास्त्रमाळा ]
चरणानुयोगनुं विधान श्री मोक्षमार्ग प्रकाशकमां पृ. २८३ पर छे, तेनो उपयोगी भाग नीचे प्रमाणे छेः —
‘‘चरणानुयोगमां जेम जीवोने पोताना बुद्धिगोचर धर्मनुं आचरण थाय तेवो उपदेश आप्यो छे. हवे धर्म तो निश्चयरूप मोक्षमार्ग छे ते ज छे, परंतु तेमां साधनादि छे ते पण उपचारथी धर्म छे. त्यां व्यवहारनयनी प्रधानताथी नाना प्रकाररूप उपचारधर्मना भेदादिकनुं आमां निरूपण करवामां आवे छे. कारण के निश्चय धर्ममां तो कांई ग्रहण
आ जीवने धर्म विरोधी कार्योने छोडाववानो तथा धर्मसाधनादि कार्योने ग्रहण करवानो आमां उपदेश छे. पृष्ठ २८३.
‘‘वळी ज्यां निश्चय सहित व्यवहारनो उपदेश होय त्यां सम्यग्दर्शनना अर्थे तत्त्वोनुं श्रद्धान करावीए छीए. तेनुं जे निश्चयरूप छे ते तो भूतार्थ छे तथा व्यवहाररूप छे ते उपचार छे. एवा श्रद्धान सहित वा स्व-परना भेदविज्ञानादि वडे परद्रव्योमां रागादि छोडवाना प्रयोजनसहित ते तत्त्वोनुं श्रद्धान करवानो उपदेश आपीए छीए. एवा श्रद्धानथी अरिहंतादिक विना अन्य देवादि जूठा भासे त्यारे तेनी मान्यता स्वयं छूटी जाय छे, तेनुं पण निरूपण करीए छीए.’’ पृष्ठ २८४.
‘‘सम्यग्ज्ञानना अर्थे संशयादि रहितपणे ए तत्त्वोने ए ज प्रकारथी जाणवानो उपदेश आपीए छीए ते जाणवाना कारणरूप जैनशास्त्रोनो अभ्यास छे; तेथी ते प्रयोजन अर्थे जैनशास्त्रोनो अभ्यास पण स्वयं थाय छे, तेनुं निरूपण करीए छीए.’’ पृष्ठ २८४.
‘‘तथा सम्यक्चारित्र अर्थे रागादि दूर करवानो उपदेश आपीए छीए, त्यां एकदेश वा सर्वदेश पापक्रियाथी ते छूटे छे. वळी मंद रागथी श्रावक - मुनिओनां व्रतोनी प्रवृत्ति थाय छे, तथा मंद रागादिनो पण अभाव थतां शुद्धोपयोगनी प्रवृत्ति थाय छे, तेनुं निरूपण करीए छीए.’’ पृष्ठ २८४.
सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्रनी एकताने मोक्षमार्ग कहो के तेने सत्यार्थ धर्मनुं स्वरूप कहो - बंने एक ज छे.
अहीं टीकाकारे निश्चय साथेना व्यवहारधर्मने ‘धर्म’ना अर्थमां घटाव्यो छे. कारण के तेमणे टीकामां सम्यग्दर्शनादिने स्वर्ग - मोक्षसुखनुं साधक कह्युं छे.