Ratnakarand Shravakachar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१२ ]

रत्नकरंडक श्रावकाचार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
तत्र सद्दर्शनविषयतयोक्तस्याप्तस्य स्वरूपं व्याचिख्यासुराह
विशेष

प्रश्न : मोक्षशास्त्रादि ग्रंथोमां तत्त्वोनां श्रद्धानने सम्यग्दर्शन कह्युं छे. ज्यारे अहीं साचां देव - शास्त्र अने गुरुनां श्रद्धानने सम्यग्दर्शन कह्युं छे. तो बंने लक्षणोमां विरोध आवशे?

समाधाान :ना, विरोध नहि आवे, कारण के पदार्थोनुं प्रतिपादन करनार साचा देव छे. तेमनां अबाधित वचनने ज आगम कहेवामां आवे छे. ते आगमना श्रद्धानथी तेमां कहेलां तत्त्वोनुं - पदार्थोना श्रद्धाननुं ग्रहण आपोआप आवी जाय छे. आ रीते ज्यां पदार्थोना श्रद्धानने सम्यग्दर्शन कह्युं छे त्यां तेना प्रतिपादक देवनां श्रद्धाननुं ग्रहण स्वयं आवी जाय छे.

सत्यार्थ आप्त विना सत्यार्थ आगम केवी रीते प्रगटे? अने बाधारहित आगमना साचा उपदेश विना सात तत्त्वादिनुं श्रद्धान केवी रीते थाय? तेथी तत्त्वादिनां श्रद्धाननुं मूळ कारण सत्यार्थ आप्त ज छे.

मोक्षमार्ग प्रकाशकमां कह्युं छे के

‘‘अरिहंतनां जे विशेषणो छे तेमां केटलाक जीवाश्रित छे अने कोई पुद्गलाश्रित छे, तेमांथी जीवना यथावत् विशेषणो जाणे तो जीव मिथ्याद्रष्टि रहे नहि.’’

(जुओ मोक्षमार्ग प्रकाशक, सातमो अधिकार, पृष्ठ २२६.)

‘‘सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्रनी एकतारूप मोक्षमार्ग छे. ए ज मुनिनुं साचुं लक्षण छे. तेने जीव यथावत् ओळखे तो ते मिथ्याद्रष्टि रहे ज नहि. (पृष्ठ २२७).

‘‘अहीं (आगममां तो) अनेकान्तरूप साचा जीवादि तत्त्वोनुं निरूपण छे तथा साचो रत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग दर्शाव्यो छे, तेथी आ जैन शास्त्रोनी उत्कृष्टता छे. तेने (अज्ञानी) ओळखतो नथी. केम के जो ए ओळखाण थई जाय तो ते मिथ्याद्रष्टि रहे नहि.’’ (पृष्ठ २२८)

आ सिद्धांतने अनुसरी आ गाथामां निश्चय सम्यग्दर्शननी व्याख्या आपी छे. ४. तेमां सम्यग्दर्शनना विषयरूपे कहेला आप्तनुं स्वरूप कहेवानी इच्छाथी कहे छे