Ratnakarand Shravakachar-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 5 Aptnu lakshaN.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

रत्नकरंडक श्रावकाचार
[ १३
आप्तेनोत्सन्नदोषेण सर्वज्ञेनागमेशिना
भवितव्यं नियोगेन नान्यथा ह्याप्तता भवेत् ।।।।

‘आप्तेन, भवितव्यं, ‘नियोगेन’ निश्चयेन नियमेन वा किंविशिष्टेन ? ‘उत्सन्नदोषेण’ नष्टदोषेण तथा ‘सर्वज्ञेन’ सर्वत्र विषयेऽशेषविशेषतः परिस्फु टपरिज्ञानधृता नियोगेन भवितव्यं तथा ‘आगमेशिना’ भव्यजनानां हेयोपादेयतत्त्वप्रतिप्रतिहेतुभूतागमप्रतिपादकेन

नियमेन भवितव्ययं कुत एतदित्याह‘नान्यथा ह्याप्तता भवेत्’ ‘हि’ यस्मात् अन्यथा

उक्तविपरीतप्रकारेण, आप्तता न भवेत् ।।।।

(आप्तनुं लक्षण)
श्लोक ५

अन्वयार्थ :[आप्तेन ] आप्त [नियोगेन ] नियमथी [उत्सन्नदोषेण ] अढार दोष रहित वीतराग, [सर्वज्ञेन ] सर्वज्ञ अने [आगमेशिना ] आगमना इश अर्थात् आगमना उपदेशक - हितोपदेशी [भवितव्यम् ] होवा जोईए. [अन्यथा हि ] कारण के कोई बीजी रीते [आप्तता ] आप्तपणुं (साचुं देवपणुं) [न भवेत् ] होई शके नहि.

टीका :आप्तेन’ आप्त होवा जोईए, नियोगेन’ निश्चयथी अथवा नियमथी. केवा विशेषतावाळा आप्त होवा जोईए? उत्सन्नदोषेण’ जेमना दोष नाश पाम्या छे तेवा होवा जोईए अर्थात् दोष रहित होवा जोईए तथा सर्वज्ञेन’ समस्त विषयोमां कांईपण बाकी रह्या विना संपूर्ण विशेषताओथी परिस्पष्ट संपूर्ण ज्ञान नियमथी जेने होय एवा (अर्थात् कांईपण बाकी रह्या विना संपूर्ण द्रव्य - गुण - पर्यायनुं परिस्पष्ट, संपूर्ण ज्ञान नियमथी जेने होय एवा) होवा जोईए. तथा आगमेशिना’ भव्य जीवोने हेय - उपादेय तत्त्वोनी प्रतिपत्तिना (तत्त्वोना ज्ञानना) कारणभूत जे आगम छे तेना प्रतिपादक (उपदेशक) नियमथी होवा जोईए. शा कारणे एवा होवा जोईए? ते कहे छेनान्यथा हि आप्तता भवेत्’ कारण के अन्यथा अन्य प्रकारे कह्युं तेनाथी विपरीत प्रकारे आप्तपणुं होई शके नहि. (वीतरागता, सर्वज्ञता अने आगमेशिता - हितोपदेशकता आ त्रण विशेषताओना अभावमां आप्तपणुं होई शके नहि.) १. ‘च्छि’ पाठान्तरं घ० २. नियोगेन, ख, ग