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भावार्थ : — जेनामां वीतरागता (निर्दोषपणुं), सर्वज्ञता अने परमहितोपदेशक- पणुं ए त्रण गुण होय तेने ज आप्त कहे छे, आ त्रण लक्षण (गुण) विना आप्तपणुं संभवी शके नहि.
आप्तमां क्षुधा - तृषादिक अढार दोषो नथी, तेथी तेओ निर्दोष छे - वीतराग छे. तेओ त्रिकालवर्ती समस्त गुण - पर्याय सहित समस्त जीव - पुद्गल, धर्म - अधर्म, आकाश, कालना अनंत पर्यायोने युगपत् प्रत्यक्ष जाणे छे, तेथी तेओ सर्वज्ञ छे अने तेओ दिव्यध्वनि द्वारा द्वादशांग आगमना मूळ उपदेशक छे. तेथी तेओ आगमना इश (स्वामी) छे.
प्रश्न : — आप्तनां आ त्रण लक्षणो केम कह्यां? एक निर्दोषतामां (वीतरागतामां) ज बधां लक्षणो न आवी जाय?
समाधाान : — पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, कालादिमां क्षुधा, तृषा, राग, द्वेषादिक दोषो नथी, तेथी तेओ निर्दोष छे. हवे निर्दोषता ज आप्तनुं लक्षण होय तो पुद्गल आदि आप्त ठरे, पण आप्त तो चेतन छे अने पुद्गलादिक तो जड छे; तेथी जड चेतन ठरे. ए अतिव्याप्ति दोष आवे.१
जो निर्दोषता (वीतरागता) अने सर्वज्ञता ए बे लक्षणो जेमां होय, तेने आप्त मानवामां आवे तो ते बे लक्षणो तो सिद्धमां पण छे, तेथी ते पण आप्त ठरे, पण तेमनामां हितोपदेशीपणानो अभाव छे तेथी तेओ आप्त नथी. तेमां पण अतिव्याप्ति दोष आवे.
माटे वीतरागता, सर्वज्ञता अने परमहितोपदेशकता ए त्रणे गुणो सहित देवाधिदेव परम औदारिक शरीरमां तिष्ठता भगवान सर्वज्ञ वीतराग अरहंतने ज १. ‘‘जे लक्ष्य तथा अलक्ष्य बंनेमां होय एवुं लक्षण ज्यां कहेवामां आवे, त्यां अतिव्याप्तिपणुं जाणवुं
छे, तथा अलक्ष्य जे आकाशादि तेमां पण होय छे, माटे ए लक्षण अतिव्याप्ति दोष सहित
लक्षण छे, कारण के ए वडे आत्माने ओळखतां आकाशादिक पण आत्मा थई जाय, ए दोष
आवे.....’’ (गुजराती मोक्षमार्ग प्रकाशक – पृष्ठ ३१९.)