Ratnakarand Shravakachar-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 8 vitarAgi devno upadesh dewAni ichchhA kem thAy.

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२६ ]

रत्नकरंडक श्रावकाचार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

‘शास्ता’ आप्तः ‘शास्ति’ शिक्षयति कान् ? ‘सतः’ अविपर्यस्तादित्वेन समीचीनान् भव्यान् किं शास्ति ? ‘हितं’ स्वर्गादितत्साधनं च सम्यग्दर्शनादिकं किमात्मनः किंचित् फलमभिलषन्नसौ शास्तीत्याह‘अनात्मार्थं’ न विद्यते आत्मनोऽर्थः प्रयोजनं यस्मिन् शासनकर्मणि परोपकारार्थमेवासौ तान् शास्ति ‘‘परोपकाराय सतां हि चेष्टितं’’ इत्यभिधानात् स तथा शास्तीत्येतत् कुतोऽवगतमित्याह‘विना रागैः’ यतो लाभपूजाख्यात्यभिलाषलक्षणपरै रागैर्विना शास्ति ततोऽनात्मार्थं शास्तीत्यवसीयते अस्यैवार्थस्य समर्थनार्थमाहध्वनन्नित्यादि शिल्पिकरस्पर्शाद्वादककराभिघातान्मुरजो मदलो

वीतरागी देवने उपदेश देवानी £च्छा केम थाय?
श्लोक ८

अन्वयार्थ :[शास्ता ] हितोपदेशी आप्त भगवान [अनात्मार्थं ] स्व - प्रयोजन विना अने [रागैः विना ] राग - द्वेष विना [सतः ] भव्य जीवोने [हितम् ] हितकारक [शास्ति ] उपदेश दे छे; [यथा ] जेम के [शिल्पिकरस्पर्शात् ] शिल्पीना हाथना स्पर्शथी [ध्वनन् ] वागतुं (अवाज करतुं) [मुरखः ] मृदंग [किम् ] शानी [अपेक्षते ] अपेक्षा राखे छे? (कांई अपेक्षा राखतुं नथी.)

टीका :शास्ता’ एटले आप्त. शास्ति’ उपदेशे छे, कोने? सतः’ विपरीत मान्यतादिथी रहित होवाथी जेओ समीचीन (सम्यग्द्रष्टि) छे तेवा भव्य जीवोने; शुं उपदेशे छे? हितं’ स्वर्गादिना साधनरूप सम्यग्दर्शनादिकने. ‘शुं पोताने माटे कांई फळनी इच्छा राखीने तेओ उपदेश करे छे? ते कहे छे? अनात्मार्थं’ ना, उपदेश देवाना कार्यमां तेमने पोतानुं कांई प्रयोजन नथी. तेओ परोपकारने अर्थे ज तेमने उपदेश दे छे, एवुं कथन छे के‘‘परोपकाराय सतां हि चेष्टितम्’’ संत पुरुषोनी चेष्टा परोपकार माटे ज होय छे. तेओ तेवी रीते उपदेशे छे एम केवी रीते जाण्युं? कहे छेविना रागैः कारण के तेओ पोताना लाभ, पूजा, ख्याति, आदिनी अभिलाषा रूप राग विना उपदेशे छे. तेथी आत्मीय प्रयोजन विना तेओ उपदेशे छे, एम नक्की थाय छे. आ ज अर्थनुं समर्थन करवा कहे छे. ध्वनन्नित्यादि’ शिल्पीना हाथना स्पर्शथी - वगाडनारना हाथनी थापथी अवाज करतुं मृदंग शुं पोताने माटे कांई अपेक्षा राखे छे? कांई ज अपेक्षा राखतुं नथी. आ अर्थ छे. जेम मृदंग परोपकार माटे ज