Ratnakarand Shravakachar-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 9 satyarth agamanu lakshaN.

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२८ ]

रत्नकरंडक श्रावकाचार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
कीदृशं तच्छास्त्रं यत्तेन प्रणीतमित्याह
आप्तोपज्ञमनुल्लंध्यमद्रदृष्टेष्टविरोधकम्
तत्त्वोपदेशकृत्सार्वं शास्त्रं कापथघट्टनम् ।।।।

अहीं पण भव्य जीवोनुं भाग्य (पुण्यनो उदय) अने दिव्यध्वनि ए बे वच्चे निमित्त - नैमित्तिक संबंध समजवो. ३. टीकाकारे सम्यग्दर्शनादिकने स्वर्गादिनुं साधन कह्युं छे. सम्यग्दर्शन ते तो आत्मानो परिणाम छे. ते निश्चय सम्यक्त्व छे, ते मोक्षनुं साधन छे. परंतु चतुर्थादि गुणस्थानोमां तेना सहचर तरीके जे शुभराग छे ते ज स्वर्गादिनुं साधन छे. ज्यां निश्चय सम्यक्त्व अने व्यवहार सम्यक्त्व सहचर रूपे होय त्यां निश्चय सम्यक्त्व तो मोक्षमार्ग रूप संवर

- निर्जरारूप छे अने तेनी साथेनुं व्यवहार सम्यक्त्व जे शुभराग रूप छे ते

पुण्यबंधनुं कारण छे अने तेना फळस्वरूप स्वर्गादिनुं कारण (साधन) छे; एम अहीं समजवुं.

अर्हंत भगवंतोने ते काळे ऊभा रहेवुं, बेसवुं, विहार करवो अने धर्मोपदेश आपवो ते स्वाभाविक ज, प्रयत्न विना ज थाय छेएम त्यां कह्युं छे अने मोहोदयपूर्वक नहि होवाथी ते क्रियाविशेषो क्रियाफळभूत बंधनां साधन थतां नथी. (जुओ श्री प्रवचनसार गाथा ४४ अने तेनी टीका) ८.

ते शास्त्र केवुं छे के जे आप्तपुरुष द्वारा कहेवायेलुं होय ते कहे छे

सत्यार्थ आगमनुं लक्षण
श्लोक ९

अन्वयार्थ :जे [आप्तोपज्ञम् ] आप्तनुं कहेलुं होय [अनुल्लंघ्यम् ] इन्द्रादिक देवो द्वारा अनुलंघनीय होय अर्थात् ग्रहण करवा योग्य होय अथवा अन्य वादीओ द्वारा जेनुं खंडन थई शके तेवुं न होय. [अदृष्टेष्ट विरोधकम् ] प्रत्यक्ष अने अनुमानादिक प्रमाणोथी विरोधरहित होय, [तत्त्वोपदेशकृत ] यथार्थ सात तत्त्वो या वस्तुस्वरूपनो उपदेश करवावाळुं होय, [सार्वं ] सर्व जीवोने हितकारक होय अने [कापथघट्टनम् ] मिथ्यात्वादि कुमार्गनुं निराकरण करवावाळुं होय, ते [शास्त्रम् ] सत् शास्त्र छे. १. सिद्धसेनदिवाकरस्य न्यायावतारेपि नवम एवायं श्लोकः