Ratnakarand Shravakachar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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रत्नकरंडक श्रावकाचार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

छे. तेमां छ द्रव्य, सात तत्त्व अने नव पदार्थनो समावेश थई जाय छे. एम श्लोक ४मां कह्युं छे, ते अहीं पण लागु पडे छे - एम समजवुं.

तत्त्वं’ शब्द एकवचनमां छे अने आप्त - आगम - तपस्वी ए त्रण होवाथी बहुवचन छे. वळी छ द्रव्य, सात तत्त्व अने नव पदार्थ ए पण बहुवचन छे. तेनुं तात्पर्य ए छे के ज्यारे जीव पोताना त्रिकाळी ज्ञायकस्वरूप जीवतत्त्वनी सन्मुख थाय छे, त्यारे ज परमार्थ सम्यग्दर्शन थाय छे अने त्यारे ज आप्त - आगम - तपस्वीनी अने छ द्रव्य, सात तत्त्व अने नव पदार्थनी साची श्रद्धा कहेवाय छे; तेथी तत्त्वं’ शब्द अहीं शास्त्रकार आचार्यदेवे एकवचनमां वापरेल छे.

श्री तत्त्वार्थसूत्रना श्लोकमां तत्त्वार्थना जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्षएम सात नामो आपीने बहुवचनने बदले एकवचन तत्त्वं’ लखेल छे. त्यां पण निज त्रिकाळी जीव तत्त्वनी सन्मुख थतां सम्यग्दर्शन प्रगटे छे एम बताववा एकवचन वापर्युं छे, तेम अहीं ते ज आशय बताववा तत्त्वं’ एकवचनमां वापर्युं छे.

श्री प्रवचनसारमां कह्युं छे के

जो जाणदि अरहंतं दव्वत्तगुणत्तपज्जयत्तेहिं
सो जाणदि अप्पाणं मोहो खलु जादि तस्स लयं ।।८०।।

जे अर्हंतने द्रव्यत्व, गुणत्व अने पर्यायत्व वडे जाणे छे; ते आत्माने जाणे छे अने तेनो मोह नाश पामे छे.

‘‘......अर्हंतादिनुं स्वरूप तो आत्माश्रित भावो वडे तत्त्वश्रद्धान थतां ज जणाय छे. माटे जेने अर्हंतादिकनुं साचुं श्रद्धान होय तेने तत्त्वश्रद्धान अवश्य होय ज एवो नियम जाणवो.....’’२.

‘‘......तत्त्वार्थश्रद्धानमां अर्हंतदेवादिकनुं श्रद्धान पण गर्भित होय छे. अथवा जे निमित्तथी तेने तत्त्वश्रद्धान थाय छे ते ज निमित्तथी अर्हंतदेवादिकनुं पण श्रद्धान थाय छे. माटे सम्यग्दर्शनमां देवादिकना श्रद्धाननो पण नियम छे......’’ ३.

‘‘.........साची द्रष्टि वडे कोई एक लक्षण ग्रहण करतां अन्य लक्षणोनुं ग्रहण थाय छे, तोपण मुख्य प्रयोजन जुदुं जुदुं विचारी अन्य अन्य प्रकारथी ए लक्षणो कह्यां छे. ज्यां तत्त्वार्थश्रद्धान लक्षण कह्युं छे त्यां तो आ प्रयोजन छे के - जो ए तत्त्वोने ओळखे