कहानजैनशास्त्रमाळा ]
बंधनुं कारण अने विषम छे, ते रीते ते दुःख ज छे.’’१
ते निष्कांक्ष सम्यग्द्रष्टि जाणवो.’’२
जेने आत्माना स्वाभाविक सुखनी श्रद्धा होय छे ते सम्यग्द्रष्टि होय छे. केवळज्ञानीओ आत्मिक अनंतसुखने अनुभवे छे. तेवा अनंतसुखने ज जाणे छे, उपादेयरूपे श्रद्धे छे अने पोताना आत्मिक सुखने अनुभवे छे, ते भव्य जीवो सम्यग्द्रष्टि छे. जे जीवोने वास्तविक सुखामृतनो अनुभव होय तेने परद्रव्योनी अने परद्रव्योना आश्रये थतां इन्द्रियसुखनी के अन्य धर्मोनी आकांक्षा केम होई शके? कदी न होय.
तेओ पोतपोताना गुणस्थान अनुसार, जो के हेयबुद्धिए विषयसुखने अनुभवे छे, तोपण निज शुद्धात्मभावनाथी उत्पन्न अतीन्द्रिय सुखने ज उपादेय माने छे अने तेथी तेमने श्रद्धामां सांसारिक सुखनी जरापण आकांक्षा नथी. तेथी सम्यग्द्रष्टि जीवोने निःकांक्षित गुण होय छे.३
‘‘जे कोई ज्ञानी, शुद्धात्मानी भावनाथी उत्पन्न थयेला परमानंद सुखमां तृप्त थई, पंचेन्द्रियना विषयसुखना कारणभूत कर्मफळोमां तेम ज सर्व वस्तुओना धर्मोमां अथवा आ लोक - परलोकनी इच्छाओ संबंधी, अन्य आगममां कहेला समस्त कुधर्मोमां इच्छा करतो नथी, ते सम्यग्द्रष्टि सांसारिक सुखमां निःकांक्षित जाणवो.’’४ १२. १.परयुक्त, बाधासहित, खंडित, बंधकारण, विषम छे;
जे इन्द्रियोथी लब्ध ते सुख ए रीते दुःख ज खरे. (श्री प्रवचनसार गाथा ७६.) २.जे कर्मफळ ने सर्व धर्म तणी न कांक्षा राखतो,
चिन्मूर्ति ते कांक्षारहित समकितद्रष्टि जाणवो. (श्री समयसार गाथा २३०.) ३. जुओ श्री पंचास्तिकाय गाथा १६३नी श्री जयसेनाचार्य कृत टीका. ४. श्री समयसार गाथा २३०नी श्री जयसेनाचार्य कृत संस्कृत टीका.