Ratnakarand Shravakachar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

रत्नकरंडक श्रावकाचार
[ ५१

रेवती लक्ष्यतां गता मता ततस्तेभ्यश्चतुर्थेभ्योऽन्यो जिनेन्द्रभक्तश्रेष्ठी उपगूहने लक्ष्यतां गतो मतः ततो जिनेन्द्रभक्तात् परो वारिषेणः स्थितीकरणे लक्ष्यतां गतो मतः विष्णुश्च विष्णुकुमारो वज्रनामा च वज्रकुमारः शेषयोर्वात्सल्यप्रभावनयोर्लक्ष्यतां गतौ मतौ गता इति बहुवचननिर्देशो दृष्टान्तभूतोक्तात्मव्यक्तिबहुत्वापेक्षया


अंगमां रेवती राणी प्रसिद्ध थई छे. ते पछी एटले ते चार पछीए चारथी अन्य जिनेन्द्रभक्त शेठ उपगूहन अंगमां प्रसिद्ध थयो छे. पछी जिनेन्द्रभक्तथी अन्य वारिषेण स्थितीकरण अंगमां प्रसिद्ध थयो छे अने विष्णु अर्थात् विष्णुकुमार मुनि अने वज्रनाम अर्थात् वज्रकुमार मुनि बाकीनां वात्सल्य अने प्रभावना अंगोमां प्रसिद्ध थया छे.

द्रष्टान्तभूत कहेली आत्मव्यक्तिना मानार्थे गताः’ एम बहुवचननो निर्देश करेल छे.

भावार्थ :सामान्यतः सम्यग्द्रष्टिने अविनाभावे आठे आठ सम्यग्दर्शननां अंग होय छे, परंतु कोई कोई अंगमां पोताना धार्मिक जीवननी बाह्य विशेषताओने लीधे लोकमां ते प्रसिद्धि पामे छे. आवी प्रसिद्धि पामेली व्यक्तिओनां नाम नीचे प्रमाणे छेः

अंगप्रसिद्ध व्यिप्रसिद्ध व्यकिकत

१. निःशंकितअंजन चोर

२. निःकांक्षितअनंतमती राणी

३. निर्विचिकित्सताउद्दायन राजा

४. अमूढद्रष्टिरेवती राणी

५. उपगूहनजिनेन्द्रभक्त शेठ

६. स्थितीकरणवारिषेण (श्रेणिक राजानो पुत्र)

७. वात्सल्यविष्णुकुमार मुनि

८. प्रभावनावज्रकुमार मुनि

उपरोक्त अंगोमां प्रसिद्ध थयेली व्यक्तिओनी कथाओ छे ते प्रथमानुयोगनो विषय छे. तेनो अर्थ नीचे प्रमाणे समजवोः १. दृष्टान्तभूतोक्तत्वाद् व्यक्ति घ० ।