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‘‘वळी प्रथमानुयोगमां उपचाररूप कोई धर्म – अंग थतां त्यां संपूर्ण धर्म थयो कहीए छीए. जेम जीवोने शंका – कांक्षादि न करतां तेने सम्यक्त्व थयुं कहीए छीए, पण कोई कार्यमां शंका – कांक्षा न करवा मात्रथी तो सम्यक्त्व न थाय. सम्यक्त्व तो तत्त्वश्रद्धान थतां ज थाय छे; परंतु अहीं निश्चय सम्यक्त्वनो तो व्यवहार सम्यक्त्वमां उपचार कर्यो तथा व्यवहारसम्यक्त्वना कोई एक अंगमां संपूर्ण व्यवहारसम्यक्त्वनो उपचार कर्यो. ए प्रमाणे तेने उपचारथी सम्यक्त्व प्राप्त थयुं कहीए छीए.’’
जेने पाछळथी सम्यक्त्व थयुं होय तेने ज१ आ उपचार लागु पडे छे, पण मिथ्याद्रष्टि द्रव्यलिंगी, जे पाछळथी सम्यग्दर्शन प्रगट करे नहि तेने आ उपचार लागु पडतो नथी, एम समजवुं.
सम्यग्दर्शन, प्रतीति, रुचि, श्रद्धा अने श्रद्धान — ए सम्यक्त्वना पर्यायवाचक शब्दो छे. सम्यग्दर्शनने आठ अंग छे. अंग शब्दनो अर्थ अवयव छे. सम्यग्दर्शन अंगी छे – अवयवी छे अने निःशंकित आदि तेनां अंग – अवयव छे.
अंगनो अर्थ लक्षण – चिह्न पण थाय छे. जेने सम्यग्दर्शन होय छे तेने निःशंकित आदि चिह्नो अवश्य होय छे.
सम्यग्दर्शननां आठ अंगोमां प्रथमनां चार अंगोः — निःशंकित, निःकांक्षित, निर्विचिकित्सता अने अमूढद्रष्टि — ए निषेधरूप छे अने बाकीनां चार अंगो – उपगूहन, स्थितीकरण, वात्सल्य अने प्रभावना – ए विधेयरूप छे.
सूचना — हवे टीकाकार आठे अंगमां प्रसिद्ध थयेली व्यक्तिओनी क्रमवार कथा कहेशे.
तेमां निःशंकितपणामां अंजनचोर द्रष्टांतपणाने पामेल छे (ते आठ अंगमां निःशंकित अंगमां अंजनचोरनुं द्रष्टांत प्रसिद्ध छे), तेनी आ कथा छे. १. मोक्षमार्ग प्रकाशक, गुजराती आवृत्ति, पृष्ठ २७६.