Ratnakarand Shravakachar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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रत्नकरंडक श्रावकाचार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
तत्र निःशंकितत्वेंऽजनचोरो दृष्टान्ततां गतोऽस्य कथा

‘‘वळी प्रथमानुयोगमां उपचाररूप कोई धर्मअंग थतां त्यां संपूर्ण धर्म थयो कहीए छीए. जेम जीवोने शंकाकांक्षादि न करतां तेने सम्यक्त्व थयुं कहीए छीए, पण कोई कार्यमां शंकाकांक्षा न करवा मात्रथी तो सम्यक्त्व न थाय. सम्यक्त्व तो तत्त्वश्रद्धान थतां ज थाय छे; परंतु अहीं निश्चय सम्यक्त्वनो तो व्यवहार सम्यक्त्वमां उपचार कर्यो तथा व्यवहारसम्यक्त्वना कोई एक अंगमां संपूर्ण व्यवहारसम्यक्त्वनो उपचार कर्यो. ए प्रमाणे तेने उपचारथी सम्यक्त्व प्राप्त थयुं कहीए छीए.’’

जेने पाछळथी सम्यक्त्व थयुं होय तेने ज आ उपचार लागु पडे छे, पण मिथ्याद्रष्टि द्रव्यलिंगी, जे पाछळथी सम्यग्दर्शन प्रगट करे नहि तेने आ उपचार लागु पडतो नथी, एम समजवुं.

विशेष

सम्यग्दर्शन, प्रतीति, रुचि, श्रद्धा अने श्रद्धानए सम्यक्त्वना पर्यायवाचक शब्दो छे. सम्यग्दर्शनने आठ अंग छे. अंग शब्दनो अर्थ अवयव छे. सम्यग्दर्शन अंगी छे अवयवी छे अने निःशंकित आदि तेनां अंगअवयव छे.

अंगनो अर्थ लक्षणचिह्न पण थाय छे. जेने सम्यग्दर्शन होय छे तेने निःशंकित आदि चिह्नो अवश्य होय छे.

सम्यग्दर्शननां आठ अंगोमां प्रथमनां चार अंगोःनिःशंकित, निःकांक्षित, निर्विचिकित्सता अने अमूढद्रष्टिए निषेधरूप छे अने बाकीनां चार अंगोउपगूहन, स्थितीकरण, वात्सल्य अने प्रभावनाए विधेयरूप छे.

सूचनाहवे टीकाकार आठे अंगमां प्रसिद्ध थयेली व्यक्तिओनी क्रमवार कथा कहेशे.

तेमां निःशंकितपणामां अंजनचोर द्रष्टांतपणाने पामेल छे (ते आठ अंगमां निःशंकित अंगमां अंजनचोरनुं द्रष्टांत प्रसिद्ध छे), तेनी आ कथा छे. १. मोक्षमार्ग प्रकाशक, गुजराती आवृत्ति, पृष्ठ २७६.