जंबूद्वीपना भरतक्षेत्रनी वर्तमान चोवीसीना चरमतीर्थंकर, शासननायक, परमवीतराग सर्वज्ञ, देवाधिदेव श्री महावीर भगवाने दिव्यध्वनी द्वारा भव्यजीवोने निजात्मकल्याणकारी बोध आयो. आ मंगलकारी दिव्यदेशनाने श्री गौतम गणधरदेव द्वारा बार अंगनी रचना द्रव्यश्रुतना स्वरुपमां गुंथवामां आवी. ते चार अनुयोगमय देशनाने तेमना पछीना महान संत आचार्य भगवंतोए लिपिबद्ध करी, ते सत्शास्त्रो महान पुण्योदये आपणने वर्तमानमां जिनवाणीरुपे संप्राप्त थयेल छे. ते महान रचनाओ पैकी आ श्री रत्नकरंड श्रावकाचार अपरनाम रत्नकरण्डक श्रावकाचार चरणानुयोगनी शैलीमां रचायेली एक उत्तम शास्त्ररचना छे.
आ ग्रंथना रचनाकार परम पूज्य भावलिंगी दिगंबर आचार्य श्री समन्तभद्रदेव विक्रमनी लगभग बीजी शताब्दीमां थयेल महान आचार्य छे. तेओश्री जैनदर्शनना उत्कृष्ट ज्ञाता, अध्यात्म अने न्यायशास्त्रना मर्मज्ञ, उत्तम भक्तिरचनाओना रचयिता जिनेन्द्र भक्त तथा अन्य मतावलंबीओनी कुयुक्तिओने खंडन करी वीतरागभावे जिनशासनने स्थापनारा वादनिपूण पण हता. तेओश्रीए घणा ग्रंथोनी रचना करी छे. जेवां के आप्तमिमांसा, जिनस्तुति शतक, स्वयंभू स्तोत्र, युक्त्यानुशासन, गंधहस्तिमहाभाष्य (तत्त्वार्थसूत्रनी टीका) जीवसिद्धि तथा रत्नकरंण्डक श्रावकाचार. तेमांथी केटलाक ग्रंथो वर्तमानमां उपलब्ध छे. आ रत्नकरंडक श्रावकाचार ग्रंथ तेओश्रीनी उत्तम रचनाओ पैकीनी एक रचना छे.
वर्तमानमां परमोपकारी अध्यात्मयुगस्रष्टा पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामीए पोताना कल्याणकारी प्रवचनोमां वारंवार आ शास्त्रना संदर्भो आपी आ शास्त्रमां छुपायेला आत्मकल्याणकारी मर्मने आ युगना भव्य जीवो माटे खोली आपणा पर महान उपकार कर्यो छे. तेओश्रीना प्रतापे ज आपणे सौ आ महान शास्त्रना गूढ भावोने कांइक अंशे समजवा शक्तिमान थया छीए.
आ महान ग्रंथ चरणानुयोगनी शैलीनो छे. तेमां मोक्षमार्गना प्रथम सोपान एवा सम्यक्दर्शनने प्राप्त पंचम गुणस्थानवर्ती श्रावकनी अंतरंग बे (अनंतानुबंधी तथा अप्रत्याख्यानावरण) चोकडी कषायना अभावरुप आत्मसाधनानुं वर्णन तेनी बाह्य वैराग्यमय प्रवृत्तिनी मुख्यताथी करवामां आवेल छे. ते कथन जो के उपदेशप्रधान शब्दोथी करवामां आव्युं होवा छतां तेटली अशुद्धिरुप व्यवहार जाणेलो प्रयोजनवान छे परंतु आदरवा(महत्त्व आपवा) माटे प्रयोजनवान नथी. आ वात पूज्य गुरुदेवश्रीना पुरुषार्थसिद्ध्युपाय नामक चरणानुयोगना ग्रंथना प्रवचनोमां तेओश्रीए आगम अने स्वानुभव द्वारा अत्यंत स्पष्ट करेल छे. आ ग्रंथनो मर्म समजवा माटे ते प्रवचनो सांभळवा अत्यंत जरुरी छे तेनाथी आ ग्रंथनो मर्म हृदयंगम थशे. आ ग्रंथमां आचार्यदेवे संस्कृत भाषामां १५० श्लोको र.या छे. जे सात अधिकारमां विभाजित करवामां आव्या छे.
प्रथम अधिकारमां आचार्यदेवे तीर्थंकर भगवान महावीरने भाव नमस्कार करी मंगलाचरण करीने सम्यक्धर्म एटले के मोक्षमार्गनो उपदेश करवानी प्रतिज्ञा करी छे. ते मोक्षमार्ग सम्यक्दर्शनज्ञानचारित्रमय छे, एम जणावी तेओश्री आ मोक्षमार्गना प्रथम सोपानरुप सम्यग्दर्शननुं स्वरुप घणा ज विस्तारथी समजावे छे.