आचार्यदेवे छठ्ठा अधिकारमां सल्लेखना-समाधिमरणना स्वरुपनी तेनी आवश्यकतानी तथा तेनी विधिनी विस्तृत चर्चा करी, संलेखनाना पांच अतिचारनुं स्वरुप बतावी संलेखनानुं फळ पण बताव्युं छे. अंतमां आ अधिकारमां मोक्षनुं तथा मुक्तजीवोनुं स्वरुप पण वर्णव्युं छे.
आचार्यदेवे छेल्ला सातमा अधिकारमां श्रावकदशामां साधनानी क्रमशः वृद्धि दर्शावती, श्रावकनी अगियार प्रतिमाओ, दर्शन, व्रत, सामायिक, प्रोषधोपवास, सचित्तत्याग, रात्रिभूक्ति-त्याग, ब्रह्मचर्य, आरंभत्याग, परिग्रहत्याग, अनुमतित्याग तथा अगियारमी उद्दिष्ट त्याग प्रतिमानुं स्वरुप बताव्युं छे. आचार्यदेवे ११मी प्रतिमाधारी श्रावकने उत्कृष्ट श्रावक तरीके वर्णव्यो छे. अंतमां पण आचार्यदेवे १५०मी गाथामां सम्यक्दर्शनने लक्ष्मीनी उपमा आपी तेनो महिमा कर्यो छे.
आ प्रमाणे आ ग्रंथमां पंचमगुणस्थानवर्ती श्रावकने हठ विना भूमिका अनुसार केवा प्रकारना बाह्यत्याग तथा मंदकषायरुप शुभभावो होय छे तेनुं वर्णन कर्युं छे. आ प्रकारना बाह्यत्याग अने मंदकषायने व्यवहारथी एटले के उपचारथी मोक्षमार्ग कहेवामां आव्यो छे, कारण के निश्चयथी बाह्य अन्य पदार्थोनुं ग्रहण के त्याग आत्मा करी शकतो ज नथी. तथा ते प्रकारना ज विकल्पो तेने जे ते भूमिकामां होय छे. ते विकल्पो आत्माना परिणाममां ज थाय छे पण ते विकल्पो तेनी कचाशना द्योतक छे अने ते मंदकषायरुप शुभभावो होवाथी खरेखर बंधनुं कारण छे. ते भावोनो ज्ञानी धर्मात्मा खरेखर ज्ञाता छे. परंतु कर्ता नथी. ते भावो ज्ञानीने हेयबुद्धिए आवे छे. पण जे ते भूमिकामां निमित्त अने सहचर होवाथी तेमने व्यवहारनयथी मोक्षमार्ग पण कहेवामां आवे छे.
परमोपकारी पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी अने पूज्य बहेनश्री चंपाबेने आ काळे आपणने मोक्षमार्गनुं उपर प्रमाणे यथार्थ स्वरुप समजावी आ शास्त्रना भावो यथार्थपणे समजवानी विधि बतावी आपणा पर अनुपम उपकार कर्यो छे.
जेम आ शास्त्रना रचयिता आचार्यदेव महान छे तेम आ ग्रंथना टीकाकार आचार्य प्रभाचंद्र पण विक्रमनी दसमी सदीमां थयेल महा आचार्य छे. टीकाकार आचार्यदेवे पण ग्रंथकर्ता महान आचार्यदेवना भावोने संक्षेपथी खोलीने आपणा पर विशेष उपकार कर्यो छे. तेमना रचेल अन्यग्रंथो प्रमेयकमलमार्तंड (परीक्षामुख व्याख्या), तत्त्वार्थवृत्ति पद विवरण(लघीयस्त्रय व्याख्या), तत्त्वार्थवृत्ति पद विवरण (सर्वार्थसिद्धि व्याख्या), जैनेन्द्र व्याकरण व्याख्या, प्रवचनसार व्याख्या, समाधितंत्र टीका, आत्मानुशासन टीका वगेरे छे. आ उपरथी फलित थाय छे के तेओ महा विद्वान आचार्य हता.
अंते आ ग्रंथना भावो पूज्य गुरुदेवश्री तथा पूज्य बहेनश्रीए जे प्रकारे खोल्या छे ते प्रकारे यथार्थपणे समजीने आपणे सौ निजात्मकल्याणमां लागीए ए ज अभ्यर्थना... फागण वद दशम
पूज्य बहेनश्रीनो ७९मो
सम्यक्जयंती महोत्सव
वि.सं. २०६७