Ratnakarand Shravakachar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 66 of 315
PDF/HTML Page 90 of 339

 

७६ ]

रत्नकरंडक श्रावकाचार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

क्षत्रियगुहायां सोमदत्ताचार्यपार्श्वे गता तस्मिन् प्रस्तावे वज्रकुमारमुनेर्वन्दनाभक्त्यर्थमायाता दिवाकरदेवादयो विद्याधरास्तदीयवृत्तान्तं च श्रुत्वा वज्रकुमारमुनिना ते भणिताः उर्विलयाः प्रतिज्ञारूढाया रथयात्रा भवद्भिः कर्तव्येति ततस्तैर्बुद्धदासी रथं भङ्ग्वा नानाविभूत्या उर्विलाया रथयात्रा कारिता तमतिशयं दृष्ट्वा प्रतिबुद्धा बुद्धदासी अन्ये च जना जिनधर्मरता जाता इति ।।२०।।


प्रवृत्ति थशे, नहितर तेमां निवृत्ति छे.’’ आवी प्रतिज्ञा लईने क्षत्रिय गुफामां रहेला सोमदत्त आचार्य पासे गई.

ते दरमियान वज्रकुमार मुनिनी वंदनाभक्ति माटे आवेला दिवाकर देवादि विद्याधरोने, तेनुं वृत्तांत सांभळीने, वज्रकुमार मुनिए कह्युंः ‘‘प्रतिज्ञारूढ उर्विलानी रथयात्रा तमारे कराववी जोईए.’’

तेथी तेओए बुद्धदासीनो रथ भांगीने अनेक विभूतिथी उर्विलानी रथयात्रा करावी. तेनो अतिशय देखीने बुद्धनी दासी प्रतिबोधने पामेली अने अन्य जनो जिनधर्ममां रत थया. ८.

विशेष

सम्यग्दर्शननां निःशंकितादि आठ अंग छे. अंगनो अर्थ अवयव, साधन, करण अने लक्षण या चिह्न थाय छे. सम्यग्दर्शन अंगी छे अने निःशंकितादि आठ अंग छे. सम्यग्दर्शन साध्य छे अने निःशंकितादि साधन छे. जे सम्यग्द्रष्टि होय छे तेने निःशंकितादि आठ चिह्नो जरूर होय छे.

आ आठ अंगमां प्रथम निःशंकितादि चार अंग निषेधरूप छे अने बाकीनां उपगूहनादि चार अंग विधेयरूप छे.

‘‘.......कोई कार्यमां शंकाकांक्षा न करवा मात्रथी तो सम्यक्त्व न थाय. सम्यक्त्व तो तत्त्वश्रद्धान थतां ज थाय छे, परंतु अहीं निश्चय सम्यक्त्वनो तो व्यवहारसम्यक्त्वमां उपचार कर्यो छे. तथा व्यवहार सम्यक्त्वना कोई एक अंगमां संपूर्ण व्यवहारसम्यक्त्वनो उपचार कर्यो, ए प्रमाणे तेने उपचारथी सम्यक्त्व थयुं कहीए छीए......’’१

जेणे सम्यक्त्व प्रगट कर्युं होय तेने आ उपचार लागु पडे छे. मिथ्याद्रष्टि १. गुजराती मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ २७६.