आत्माने ज पोतारूप अनुभवता, शुभाशुभ भावोथी पण जे उदासीन होय छे......’’१
श्री कुंदकुंदाचार्ये षट्पाहुडमां२ (दर्शनपाहुडमां) कह्युं छे के —
‘‘सम्यग्दर्शन छे मूळ जेनुं, एवो जिनवर द्वारा उपदेशेलो धर्म सांभळी, हे
पुरुषो! तमे एम मानो के सम्यक्त्व रहित जीव वंदन योग्य नथी. जे पोते कुगुरु छे अने कुगुरुना श्रद्धान सहित छे ते सम्यग्द्रष्टि क्यांथी होय? तेवा सम्यक्त्व विना अन्य धर्म पण न होय तो ते धर्म विना वंदन योग्य क्यांथी होय?’’