Samadhitantra-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 46.

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समाधितंत्र८५
भूयो भ्रान्तिं गतोऽसौ कथं तां त्यजेदित्याह
अचेतनमिदं दृश्यमदृश्यं चेतनं ततः
क्व रुष्यामि क्व तुष्यामि मध्यस्थोऽहं भवाम्यतः ।।४६।।

टीकाइदं शरीरादिकं दृश्यमिन्द्रियैः प्रतीयमानं अचेतनं जडं रोषतोषादिकं कृतं न जानातीत्यर्थः यच्चेतनमात्मस्वरूपं तददृश्यमिन्द्रियग्राह्यं न भवति ततः यतो रोषतोषविषयं दृश्यं शरीरादिकमचेतनं चेतनं स्वात्मस्वरूपमदृश्यत्वात्तद्विषयमेव न भवति ततः क्व रुष्यामि क्व रागद्वेष थई जाय छे, तेथी तेने ज्ञानचेतना साथे कदाचित् कर्मचेतना अने कर्मफलचेतनानो पण सद्भाव मानवामां आव्यो छे, पण ते कर्मचेतना अने कर्मफळचेतनानो ज्ञाताद्रष्टा रहे छे. वास्तवमां ते बंने चेतनाओ ज्ञानचेतना ज छे.

अंतरात्माने पूर्वना संस्कारोने लीधे नीचेनी भूमिकामां जे भ्रान्ति थाय छे ते मिथ्यात्वजनित नथी, परंतु अस्थिरताजनित छे; तेथी तेने रागद्वेष थवा छतां तेना सम्यक्त्वमां कांई दोष आवतो नथी. ४५.

फरीथी भ्रान्ति पामेलो ते (अन्तरात्मा) तेने (भ्रान्तिने) केवी रीते छोडे ते कहे छेः

श्लोक ४६

अन्वयार्थ : (इदं दृश्यं) आ शरीरादि द्रश्य पदार्थ (अचेतनं) चेतनारहितजड छे अने जे (चेतनं) चैतन्यस्वरूप आत्मा छे ते (अदृश्यं) इन्द्रियोद्वारा देखाय तेवो नथी; (ततः) तेथी (क्व रुष्यामि) हुं कोना उपर रोष करुं? अने (क्व तुष्यामि) कोना उपर राजी थाउं? (अतः अहं मध्यस्थः भवामि) एटला माटे हुं मध्यस्थ थाउं छुंएम अन्तरात्मा विचारे छे.

टीका : आ एटले शरीरादिक, जे द्रश्य एटले इन्द्रियोद्वारा देखावा योग्य छे प्रतीतिमां आववा योग्य छे, ते अचेतनजड छे; ते करेला रोषतोषादिकने जाणतुं नथी एवो अर्थ छे. जे चेतनस्वात्मस्वरूप छे, ते अद्रश्य छे एटले इन्द्रियोद्वारा ग्राह्य नथी; तेथी हुं कोना उपर रोष करुं? अने कोना उपर तोष करुं? कारण के द्रश्य शरीरादिक अचेतन १. जुओश्री पंचाध्यायीउत्तरार्द्ध गु. आवृत्तिगाथा २०५, २७६, ४१९

द्रश्यमान आ जड बधां, चेतन छे नहि द्रष्ट;
रोष करुं क्यां? तोष क्यां? धरुं भाव मध्यस्थ. ४६.