Samadhitantra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समाधितंत्र८९

चित्तमात्मेत्यभेदेनाध्यवसेदित्यर्थः वाक्कायाभ्यां तु पुनर्वियोजयेत् पृथक्कुर्यात् वाक्काययोरात्माभेदाध्यवसायं न कुर्यादित्यर्थः एतच्च कुर्वाणो व्यवहारं तु प्रतिपाद्यप्रतिपादकभावलक्षणं प्रवृत्तिनिवृत्तिरूपं वा वाक्काययोजितं वाक्कायाभ्यां योजितं सम्पादितं केन सह ? मनसा सह मनस्यारोपितं व्यवहारं मनसा त्यजेत् चित्तेन न चिन्तयेत् ।।४८।।


एवो अर्थ छेअने वाणी तथा कायथी तेने (आत्माने) वियुक्त करेपृथक् करे, अर्थात् वाणी अने कायामां आत्मानो अभेदरूप अध्यवसाय करे नहिएवो अर्थ छे; अने तेम करनार, वाक् काययोजित अर्थात् वाणीकायद्वारा योजित अर्थात् सम्पादित ‘प्रतिपाद्य’ प्रतिपादकभावरूप (शिष्टगुरु संबंधरूप) प्रवृत्तिनिवृत्तिरूप व्यवहारने, कोनी साथे (योजित)? मन साथे अर्थात् मनमां आरोपित व्यवहारने, मनथी तजे अर्थात् मनमां चिंतवे नहि.

भावार्थ : अंतरात्मा भावमनने वाणी अने देहनी क्रिया तरफथी (प्रवृत्तिथी) वियुक्त करीनेअलग करीने आत्मस्वरूपमां लगाडे अर्थात् तेनी साथे अभेद करेतल्लीन करे अने वाणी तथा कायद्वारा योजित प्रवृत्तिनिवृत्तिरूप व्यवहारने मनमांथी तजे अर्थात् तेनो विचार छोडी दे.

विशेष

वाणीकायनी प्रवृत्ति ते जडनी क्रिया छे, आत्मा ते करी शकतो नथी. अन्तरात्माने भेदज्ञान छे, तेथी ते पोताना उपयोगने वाणीकायनी क्रिया तरफथी हठावी पोताना आत्मस्वरूपमां रोके छे.

ज्यां सुधी जीव वचनकायथी क्रिया साथे एकताबुद्धि करेतेने आत्मानी क्रिया समजे, त्यां सुधी तेनो उपयोग त्यांथी छूटी स्वसन्मुख वळे नहि अने आत्मस्वरूपमां स्थिर थाय नहि.

उपयोगद्वारा स्वनुं ग्रहण करवामां ज समस्त परद्रव्योनो अने परभावोनो स्वयं त्याग थई जाय छे.

नीचली भूमिकामां ज्ञानीनो उपयोग कदाचित् अस्थिरताने लीधे वाणी कायनी क्रियाद्वारा पर साथेना व्यवहारमां जोडाय छे, पण तेमां तेने कर्तृत्वबुद्धिनो अभाव छे अभिप्रायमां तेनो निषेध छे. जेम रोगीने कडवी दवा प्रत्ये अरुचि होय छे, तेम तेने ते प्रत्ये उदासीनता होय छे; तेथी ज्ञानीनो उपयोग शरीरादिनी क्रियामां जोडायेलो देखाय, छतां ते नहि जोडायेला समान छे.

शरीरवाणीनी क्रिया विषे एकता बुद्धिनोआत्मबुद्धिनो त्याग अने शुद्धात्मस्वरूपनुं ग्रहण ते अंतरात्मानां अंतरंग त्याग ग्रहण छे.