Samadhitantra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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‘सर्वव्याकरणे विपश्चिदधिपः श्रीपूज्यपादः स्वयम् ’ (–श्र.शि.ले.नं. ४७, ५०)
‘जैनेन्द्रे पूज्यपादः’(–श्र.शि.ले.नं. ५५)

सर्व व्याकरणोमां, श्री पूज्यपाद स्वयं विद्वानोना अधिपति हता, अर्थात् सर्व व्याकरण पंडितोमां शिरोमणि हता. शब्दावतार :

आ पण व्याकरणनो ग्रन्थ छे. ते प्रख्यात वैयाकरण पाणिनीना व्याकरण उपर लखेलो ‘शब्दावतार’ नामनो न्यास छे. ‘नगर’ तालुकाना शिलालेखमां तेनो उल्लेख छे. सर्वार्थसिद्धि :

श्री उमास्वामी रचित तत्त्वार्थसूत्रनी संस्कृत टीकारुपे आ ग्रन्थ छे. तत्त्वार्थसूत्रनी आ सौथी प्रथम टीका छे. तेनी पछी श्री अकलंकदेवे तत्त्वार्थ राजवार्तिक’ अने श्री विद्यानंदे तत्त्वार्थश्लोक नामनी टीकाओ लखी. आ टीकाओमां ‘सर्वार्थसिद्धि’नो सारो उपयोग करवामां आव्यो छे अने तेनुं ठीक प्रमाणमां अनुसरण करवामां आव्युं छे. सिद्धांत ग्रन्थोमां आ ग्रन्थ बहु ज प्रमाणभूत गणाय छे अने जैन समाजमां तेनुं सारुं महत्व अंकाय छे. समाधितंत्र अने इष्टोपदेश :

आ बंने आध्यात्मिक ग्रन्थो छे. समाधितंत्रनुं अपरनाम समाधिशतक छे. तेनी सं. टीका श्री प्रभाचंद्रे करी छे अने इष्टोपदेशनी सं. टीका पं. आशाधरजीए करी छे. बंने ग्रंथो जैन- समाजमां सुप्रसिद्ध छे.

श्री पूज्यपादाचार्ये ‘समाधितंत्र’मां श्री कुंदकुंदाचार्य जेवा प्राचीन आचार्योनां आगमवाक्योनुं सफळतापूर्वक अनुसरण कर्युं छे. मोक्षपाहुड, समयसारादि आध्यात्मिक शास्त्रोनो आंशिक प्रतिध्वनि, आ ग्रन्थमां तुलनात्मक द्रष्टिवाळाने जरुर जणाया वगर रहेशे नहि.

उपसंहार

शिलालेखो, उपलब्ध ग्रन्थो अने ऐतिहासिक गवेषणाथी ज्ञात थाय छे के पूज्यपादस्वामी एक सुप्रतिष्ठित जैन आचार्य, अद्वितीय वैयाकरण, महान दार्शनिक, धुरंधरकवि, महान तपस्वी अने युगप्रधान योगीन्द्र हता. महत्त्वना विषयो उपर तेमणे जे ग्रन्थो रच्या छे ते तेमनी अपार विद्वत्तानी साक्षी पूरे छे.

तेमना दिगंतव्यापी यश अने विद्वत्ताथी आकर्षाई कर्णाटकना ई.स. ८मी, ९मी, १०मी शताब्दिना प्राय: सर्व प्राचीन विद्वान कविओए पोतपोताना ग्रन्थोमां बहु भक्ति–भावभरी श्रद्धांजलि अर्पी तेमनी मुक्तकंठे खूब खूब प्रशंसा करी छे.