प्रस्तुत ग्रन्थनी संस्कृत टीकाने अंते आपेली प्रशस्ति उपरथी जणाय छे के श्री प्रभाचन्द्र (प्रभेन्दु) आ ग्रंथना संस्कृत टीकाकार छे. केटलाक विद्वानोना मत प्रमाणे तेओ ‘श्री समन्तभद्राचार्य’ रचित ‘रत्नकरंड-श्रावकाचार’ना पण संस्कृत टीकाकार छे. तेमणे समाधितंत्रना (समाधिशतकना) प्रत्येक श्लोकमां गर्भित रहेला भावने (हार्दने) सरळ संस्कृत भाषामां सारी रीते व्यक्त कर्यो छे.
तेमनो समय, स्थान, गुरु, माता-पितादिना संबंधमां योग्य संशोधन थवानी जरुर छे. आ ग्रन्थमां तेमनी संस्कृत टीकानो शब्दश: गुजराती अनुवाद करवामां आव्यो छे.
केटलांक वर्ष उपर परम पूज्य आत्मज्ञ संत श्री कानजीस्वामीनां, आ आध्यात्मिक ग्रन्थ उपर सोनगढमां, प्रवचनो थयेलां. मने ते पूरेपूरां सांभळवानी अलभ्य तक मळेली. हुं तेओश्रीनां प्रवचनोथी प्रभावित थयो अने विचार स्फूर्यो के आवा ग्रन्थनो गुजराती अनुवाद करवामां आवे तो, विद्वान ग्रन्थकर्ताना आध्यात्मिक ज्ञानथी जैन समाज वंचित रहे नहि. आ विचार केटलांक वर्षो सुधी घोळाया कर्यो. आखरे मित्रो अने स्नेहीओनी सलाह अने सहानुभूतिथी ए विचार बे वर्ष उपर अनुवादरुपे परिणम्यो.
खरुं कहुं, तो आ अनुवादना मूळ प्रेरकरुप श्री स्वामीजीनां प्रवचनो ज छे. तेथी अत्यंत आभारपूर्वक हुं तेओश्री प्रत्ये सादर भक्तिभाव प्रगट करुं छुं.
में मारो विचार मान्यवर मुरब्बी श्रीयुत रामजीभाई माणेकचंद दोशी, वकील आगळ रजू कर्यो अने करेला अनुवादने तपासी जवाने तेओश्रीने विनंती करी. तेमणे घणी ज काळजीपूर्वक ते अनुवादने आदिथी अंत सुधी–प्रत्येक श्लोकनो अन्वयार्थ, संस्कृत टीकानो अनुवाद, भावार्थ, वगेरे-बराबर तपास्यो अने अमूल्य सूचनाओ करी. सूचवेला सुधारा- वधारा साथे में तेओश्रीनी देखरेख नीचे फरीथी अनुवाद लख्यो. आ अनुवाद पण तेओश्री फरीथी तपासी गया. आ रीते अनुवाद पाछळ तेमणे लगभग त्रण महिना जेटला पोताना अमूल्य समयनो भोग आपी श्रम लीधो. ते माटे हुं तेओश्री प्रति कृतज्ञताभरी लागणी पूज्यभाव प्रगट करुं छुं.
आ अनुवादना प्रकाशन माटे श्री जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट–सोनगढना प्रमुख श्री नवनीतलाल सी. झवेरी (मुंबई)ने विनंती करी. तेमने पण आ ग्रन्थना अनुवादनी आवश्यकता जणाई एटलुं ज नहि, पण ते एक सुंदर ग्रन्थस्वरुप प्रगट थाय तेवी इच्छा व्यक्त करी अने बधो अनुवाद श्रीयुत खीमचंदभाई जे. शेठ द्वारा तपासावी लेवा सलाह आपी. ते प्रमाणे में तेमने विनंती करी. तेमणे मारी विनंतीने मान आपी बधो अनुवाद बारीक द्रष्टिए