तपासी लीधो अने कोई कोई स्थळे योग्य सुधारो सूचव्यो.
मुख्यतया श्रीयुत रामजीभाई अने श्रीयुत खीमचंदभाईना सुप्रयत्नना फलस्वरुप आ अनुवाद छे. ते माटे नम्रभावे हुं तेमनो जेटलो आभार मानुं तेटलो ओछो छे. तेमनी सहाय अने प्रोत्साहनथी ज आ अनुवाद प्रकाशमां आववा पाम्यो छे, एम कहेवामां बिलकुल अतिशयोक्ति नथी.
आ ग्रन्थनो हिन्दी अनुवाद ब्र. श्री शीतलप्रसादजी तथा श्रीयुत जुगलकिशोर मुख्तारजीए करेलो छे, परंतु तेओए संस्कृत टीकानो शब्दश: अनुवाद नहीं करतां फक्त भाव ज आप्यो छे. तेनो गुजराती अनुवाद, स्व. मणिलाल नभुभाई द्विवेदीकृत, सस्तु साहित्यवर्धक कार्यालय–अमदावाद तरफथी प्रसिद्ध थयो छे. तेमणे पाटण–जैन भंडारनी हस्तलिखित प्रतना आधारे संस्कृत टीकानो अनुवाद कर्यो छे, परंतु उपलब्ध बीजी दिगम्बर जैन हस्तलिखित प्रतो साथे तेनो केटलीक जग्याए मेळ बेसतो नथी.
जयपुर तथा दिल्ही दि. जैन भंडारोनी हस्तलिखित प्रतो उपरथी श्री मुख्तारजीए जे संस्कृत टीका प्रगट करी छे, तेनो आ ग्रन्थमां उपयोग करवामां आव्यो छे. आ टीकाने घणे अंशे मळती एक वधु शुद्ध हस्तलिखित प्रत मने ईडर–दि. जैन सरस्वती भंडारमांथी तेना प्रबंधकर्ताना सौजन्यथी प्राप्त थई छे. आ बधी प्रतोनो आधार लई शब्दश: आ गुजराती अनुवाद करवामां आव्यो छे अने आ ग्रंथकर्ता तथा टीकाकारना भावने वधु स्पष्ट करवा, ते साथे ‘भावार्थ’ तथा ‘विशेषार्थ’ पण उमेरवामां आव्या छे.
आ कार्यमां प्रत्यक्ष या परोक्ष सहाय करनार व्यक्तिओनो तथा दि. जैन संस्थाओनो हुं आभार मानुं छुं.
ब्र. श्री गुलाबचंदभाई तथा ब्र. श्री चंदुभाईए पण अनुवाद-कार्यमां प्रोत्साहन अने सहानुभूति दर्शावी छे तथा मार्गदर्शन कर्युं छे. ते माटे हुं तेमनो पण आभारी छुं.
आ सिवाय जे जे भाईओए मने सहाय करी छे, ते सर्वेनो हुं समग्रपणे आभार मानुं छुं.
आ अनुवाद उपरोक्त बे विद्वानो द्वारा परिशोधित होवा छतां तेमां जे कांई स्खलना द्रष्टिगोचर पडे ते अनुवादकनी ज छे, एम समजवा विद्वान वर्गने विनंती छे.
सोनगढ (सौराष्ट्र) ता. ३-४-१९६६ श्री महावीर जयंति