७३.शुं मनुष्योनो संसर्ग छोडी जंगलमां वसवुं ?........................................... १२७ ७४.आत्मभावना अने अनात्मभावनानुं फळ .............................................. १२८ ७५.आत्मा ज आत्मानो गुरु छे ............................................................. १२९ ७६.बहिरात्मा मरणथी शाथी डरे छे ?...................................................... १३१ ७७.अन्तरात्मानी मरण समये निर्भयता .................................................... १३२ ७८.जे व्यवहारमां सूतो ते आत्मविषयमां जागृत .......................................... १३४ ७९.जे आत्मविषयमां जागृत होय छे ते मुक्ति पामे छे. ................................. १३६ ८०.अन्तरात्माने जगत योग अवस्थामां केवुं लागे छे. ................................... १३७ ८१.आत्माने शरीरादिथी भिन्न भाळ्या विना मुक्ति नथी................................ १३९ ८२.अन्तरात्माए भेदविज्ञाननी भावना केवी रीते करवी ? .............................. १४० ८३.अव्रतोनी जेम व्रतोना विकल्प पण त्याज्य छे. ........................................ १४२ ८४.व्रतोना विकल्पोने छोडवानो क्रम ......................................................... १४३ ८५.विकल्पजाळना नाशथी परमपदनी प्राप्ति. .............................................. १४४ ८६.उत्प्रेक्षा--जालना नाशनो क्रम.............................................................. १४६ ८७.लिंग--विकल्प मोक्षनुं कारण नथी. ....................................................... १४९ ८८.जातिनो आग्रह पण मुक्तिनुं कारण नथी............................................... १५० ८९.जाति संबंधी आगम--हठवाळो परमपदने पामता नथी. ............................. १५१ ९०.मोही जीवोनो शरीरमां अनुराग ........................................................ १५३ ९१.मोही जीवोनो शरीरमां दर्शन-व्यापारनो विपर्यास .................................... १५४ ९२.संयोगी अवस्थामां अन्तरात्मा शुं करे छे ? ............................................ १५५ ९३.बहिरात्मा अने अन्तरात्मानी कई दशा भ्रमरुप अने कई भ्रमरहित होय छे. .. १५६ ९४.बहिरात्मानुं सकल शास्त्रज्ञान निष्फळ छे. .............................................. १५९ ९५.ज्ञातात्मानुं सप्तादि अवस्थाओमां पण स्वरुप संवेदन ............................... १६० ९६.चित्त क्यां अनासक्त होय छे ? .......................................................... १६२ ९७.भिन्नात्मानी उपासनानुं फळ............................................................. १६३ ९८.अभिन्नात्मानी उपासनानुं फळ .......................................................... १६४ ९९.भिन्नाभिन्नात्मभावनानो अस्वीकार ................................................... १६६ १००.चार्वाक--सांख्यमतनुं निरसन ............................................................. १६८ १०१.शरीरनो नाश थवा छतां आत्मानो अविनाश.......................................... १७१ १०२.मुक्ति माटे भेदविज्ञान साथे तपश्चरण ................................................. १७२ १०३.आत्मानी गति-स्थितिथी शरीरनी गति-स्थिति ......................................... १७३ १०४.शरीर--यंत्रोनुं आत्मामां आरोपण ...................................................... १७६ १०५.ग्रन्थनो उपसंहार .......................................................................... १७७ टीका प्रशस्ति................................................................................ १७९