४समाधितंत्र
आत्मा आत्मारूपे छे अने शरीरादि पर पदार्थोरूपे नथी तथा शरीरादि पर पदार्थो पररूपे छे अने आत्मारूपे नथी – एवुं निर्णयपूर्वक स्व – परनुं भेदविज्ञान सिद्धपद पामवानो मोक्षप्राप्तिनो उपाय छे.
श्री समयसार गाथा २नी टीकामां पण लख्युं छे के –
‘........सर्व पदार्थोना स्वभावने प्रकाशवामां समर्थ एवा केवळज्ञानने उत्पन्न करनारी भेदज्ञानज्योति उदय पामे छे......’’
ए प्रमाणे भेदज्ञानज्योति ज केवळज्ञान प्रगट करवानुं साधन (उपाय) छे.
‘‘प्रथम तो दुःख दूर करवा माटे स्व – परनुं ज्ञान अवश्य जोईए कारण के स्व – परनुं ज्ञान जो न होय तो पोताने ओळख्या विना पोतानुं दुःख ते केवी रीते दूर करे?
अथवा स्व – परने एकरूप जाणी पोतानुं दुःख दूर करवा अर्थे परनो उपचार करे तो तेथी पोतानुं दुःख केवी रीते दूर थाय? अथवा पोताथी भिन्न एवा परमां आ जीव अहंकार – ममकार करे तो तेथी दुःख ज थाय. माटे स्व – परनुं ज्ञान थतां दुःख दूर थाय छे.
हवे स्व – परनुं ज्ञान जीव – अजीवनुं ज्ञान थतां ज थाय छे कारण के पोते जीव छे तथा शरीरादिक अजीव छे. जो लक्षणादि वडे जीव – अजीवनी ओळखाण थाय तो ज स्व – परनुं भिन्नपणुं भासे; माटे जीव – अजीव जाणवा जोईए.....’’१
‘‘........सर्वे दुःखोनुं मूळ कारण मिथ्यादर्शनज्ञानचारित्र छे. ए सर्वे दुःखोनो अभाव करवा माटे तेने बे प्रकारनुं भेदज्ञान कराववामां आवे छे.
जीव पोताना गुणो अने पर्यायोथी एक छे – अभिन्न छे तथा पर द्रव्यो, तेना गुणो अने पर्यायोथी अत्यंत जुदो छे अर्थात् जीव स्वद्रव्ये स्वक्षेत्रे स्वकाळे अने स्वभावे, पर द्रव्यनां द्रव्यक्षेत्रकाळभावथी अत्यंत जुदो छे. तेथी ते अपेक्षाए पर द्रव्यो, तेना गुणो अने १. मोक्षमार्ग प्रकाशक – गु. आवृत्ति – पृ. ८२