६समाधितंत्र
अथोक्तप्रकारसिद्धस्वरूपस्य तत्प्राप्त्युपायस्य चोपदेष्टारं सकलात्मानमिष्टदेवताविशेषं स्तोतुमाह — स्वाभाविक भावनुं विज्ञान थाय छे, जे वडे पोताने सिद्ध समान थवानुं साधन थाय छे. तेथी साधवा योग्य पोतानुं शुद्ध स्वरूप, तेने दर्शाववा माटे जे प्रतिबिंब समान छे तथा जे कृतकृत्य थया छे तेथी ए ज प्रमाणे अनंतकाळ पर्यंत रहे छे एवी निष्पन्नताने पामेला श्री सिद्ध भगवानने अमारा नमस्कार हो......’’
प्रश्नः पंचपरमेष्ठीमां पहेला अरिहंत देव छे; तो तेमना बदले अहीं सिद्ध भगवानने प्रथम नमस्कार केम कर्या?
उत्तरः सिद्ध दशा ते आत्मानुं परम ध्येय छे. ते ज आत्माने इष्ट छे. ग्रन्थकर्ता व्याख्याता, श्रोता अने अनुष्ठाताने सिद्धस्वरूप प्राप्त करवानी भावना छे, तेथी सिद्ध भगवानने नमस्कार करी कर्ताए ग्रन्थनी शरूआत करी छे. जेने जे गुणनी प्राप्तिनी भावना होय ते ते गुणधारीनुं बहुमान करी तेने नमस्कार करे ए स्वाभाविक छे. जेम धनुर्विद्यानी प्राप्तिनो अभिलाषी पुरुष धनुर्विद्या जाणनारनुं बहुमान करे छे, तेम सिद्धपदनी प्राप्तिनी भावनावाळो जीव, सिद्धपदने पामेला सिद्ध भगवानने नमस्कार करीने शुद्धात्मानो आदर करे छे.
वळी आ अध्यात्म शास्त्र छे तेथी तेमां प्रथम सिद्ध भगवानने नमस्कार करवा ते उचित छे.१
श्री कुन्दकुन्दाचार्ये पण श्री समयसारनी शरूआत करतां प्रथम ‘‘वंदित्तु सव्वसिद्धे.......’ कहीने सर्व सिद्धोने नमस्कार कर्या छे.
अरहंतादिने एकदेश सिद्धपणुं प्रगट थयुं छे, माटे सिद्ध भगवानोने नमस्कार करतां पंचपरमेष्ठी भगवंतोने पण तेमां नमस्कार आवी जाय छे.
आ कारणथी शास्त्रकर्ताए मंगलाचरणमां प्रथम सिद्ध भगवानने नमस्कार कर्या छे. १. हवे उक्त प्रकारना सिद्धस्वरूपना तथा तेनी प्राप्तिना उपायना उपदेशदाता इष्टदेवता विशेष ‘सकलात्मनी’ (अरहंत भगवाननी) स्तुति करतां कहे छेः – १. जुओः बृ. द्रव्यसंग्रह-गाथा १नी टीका.