Samadhitantra-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 2.

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समाधितंत्र
जयन्ति यस्यावदतोऽपि भारतीविभूतयस्तीर्थकृतोप्यनीहितुः
शिवाय धात्रे सुगताय विष्णवे जिनाय तस्मै सकलात्मने नमः ।।।।

टीकायस्य भगवतो जयन्ति सर्वोत्कर्षेण वर्तन्ते काः ? भारतीविभूतयः भारत्याः वाण्याः विभूतयो बोधितसर्वात्महितत्वादिसम्पदः कथंभूतस्यापि जयन्ति ? अवदतोऽपि ताल्वोष्ठपुटव्यापारेण वचनमनुच्चारयतोऽपि उक्तं च

‘‘यत्सर्वात्महितं न वर्णसहितं न स्पंदितोष्ठद्वयं,
नो वांछाकलितं न दोषमलिनं न श्वासरुद्धक्रमं
श्लोक २

अन्वयार्थ :(यस्य अनीहितुः अपि) जेमने इच्छा पण नथी, (अवदतः अपि) जेमने तालु, ओष्ठादिद्वारा शब्दोच्चारण पण नथी, (तीर्थकृतः) जेओ तीर्थना करनार छे अने जेमनी (भारतीविभूतयः) वाणीनी (सर्व प्राणीओने हित उपदेशवारूप) विभूतिओ (जयन्ति) जयवंत वर्ते छे, (तस्मै) ते (शिवाय) शिवने (धात्रे) विधातानेब्रह्माने, (सुगताय) सुगतने, (विष्णवे) विष्णुने, (जिनाय) जिनने अने (सकलात्मने) सशरीर शुद्धात्माने (अरहंत परमात्माने) (नमः) नमस्कार हो.

टीका : जे भगवाननी जयवंत वर्ते छे अर्थात् सर्वोत्कर्षरूपे वर्ते छेशुं (जयवंत वर्ते छे)? भारतीनी विभूतिओभारतीनी एटले वाणीनी अने विभूतिओ एटले सर्व आत्माओने हितनो उपदेश देवो इत्यादिरूप संपदाओ(जयवंत वर्ते छे).

केवा होवा छतां (तेमनी वाणीनी विभूतिओ) जयवंत वर्ते छे? नहि बोलता होवा छतां अर्थात् तालुओष्ठना संपुटरूप (संयोगसम) व्यापारद्वारा वचनोच्चार कर्या विना पण (तेमनी वाणी प्रवर्ते छे).

वळी कह्युं छे के

‘‘जे सर्व आत्माओने हितरूप छे, वर्णरहित निरक्षरी छे, बंने होठना परिस्पंदन

बोल्या विण पण भारती-ॠद्धि ज्यां जयवंत,
इच्छा विण पण जेह छे तीर्थंकर भगवंत,
वंदुं ते सकलात्मने श्री तीर्थेश जिनेश,
सुगत तथा जे विष्णु छे, ब्रह्मा तेम महेश. २.